ताला लगने की कगार पर मध्य प्रदेश में 600 किस्मों वाला देसी बीज बैंक

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बनखेड़ी तहसील के गरधा गाँव के मकान में चलता है ये बीज बैंक

मध्य प्रदेश के एक गाँव में, बीजों की 600 से अधिक प्रजातियाँ सहेज कर रखने वाले किसान मान सिंह गुर्जर अब अपने बीज बैंक को लेकर फिक्रमंद हैं। चिंता बीज बैंक में ताला लगने की है। मानसिंह गुर्जर ने 12 साल पहले इस बीज बैंक को शुरू किया था, लेकिन उन्हें डर है कि कहीं आर्थिक तंगी के कारण इसे बंद न करना पड़ जाए। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 175 किमी दूर नर्मदापुर जिले के बनखेड़ी तहसील के गरधा गाँव के मकान में चलता है ये बीज बैंक। एक कमरे में लोहे का सीढ़ीनुमा स्ट्रक्चर, जिसमें प्लास्टिक के डिब्बों के अंदर गेहूँ की 160, धान की 300, मिर्च की 45, बैंगन की 18, टमाटर की 16, लौकी की 20, तोरई की 16, गिलकी की 16, करेले की 7, सेम की 18, पालक की 3, मेथी की 3 और मूली की 4 किस्मों की बीज रखे हैं। इसके अलावा फल, कई दूसरी सब्जियों, मोट अनाज यानी मिलेट्स में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, मक्का के बीज की किस्में रखी हैं।

मानसिंह गुर्जर कहते हैं, “पूर्वजों से बीजों को सहेज कर रखने की प्रेरणा मिली, बस वहीं से बीज बैंक बनाने की शुरुआत की।” किसान मान सिंह के पास 16 एकड़ खेत हैं। इसमें से 2 एकड़ खेत उन्होंने इन्हीं बीजों के नाम कर दिए हैं। मान सिंह आगे कहते हैं, “हर साल मैं बीजों को बनाए रखने के लिए बीजों को उगाता हूँ; फिर उन्हीं पौधों में से बीज लेकर उन्हें सुरक्षित रखता हूँ।” “एक बीज को अधिक वर्षों तक नहीं रखा जा सकता, इसलिए बीजों को बनाए रखने के लिए हमें समय-समय पर उगा कर पौधों से नए बीज लेने ही पड़ते हैं। ” मानसिंह ने आगे कहा। मध्यप्रदेश का एकमात्र देसी बीजों का बैंक आज कई चुनौतियों से घिरता जा रहा है। वजह है, हाइब्रिड बीजों की ब्रांडिंग, जिसके लिए कंपनियां लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर इनके फायदे गिनाती है। देसी बीज बैंक, इन कंपनियों के आगे कमजोर पड़ गया है, क्योंकि इस बैंक को 16 एकड़ ज़मीन के मालिक किसान मानसिंह गुर्जर अपने दम पर चला रहे हैं। मान सिंह प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हैं। मान सिंह का मानना है कि सरकार मानती तो है कि देसी बीज ही खेती की मूल अवधारणा है, लेकिन इस बैंक को अपनाती नहीं है। इसके कारण न तो बीज बैंक में पाए जाने वाले बीजों की ब्रांडिंग हो रही है और न ही उम्मीद के अनुरूप बिक्री। उलटे इन बीजों को संभालकर रखने और इनके मूल स्वरूप को बचाए रखने के नाम पर हर साल उन्हें हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

किसान मानसिंह को इस बात की चिंता है कि कहीं हाइब्रिड बीज के चलते देसी बीज देशभर से विलुप्त न हो जाए। जबकि यही बीज आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध और पौष्टिक अनाज दे सकते हैं। रोगों और गहराते जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में काफी हद तक मददगार भी हैं। देसी बीजों के फायदे ऐसे बीजों से फल, सब्जी और अनाज की मूल प्रकृति बनी रहती है जो किसी भी बीज के लिए जरूरी है। कृषि विज्ञान केंद्र बैतूल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, संजीव वर्मा कहते हैं, “हाइब्रिड बीज अधिक पैदावार देते हैं, इन्हें कम समय में उगाया जा सकता है; लेकिन देसी बीज के गुणों की ये बराबरी नहीं कर पाते, इनमें रोगों और जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले खतरों से लड़ने की क्षमता कम होती जाती है और जब भी फसलों पर बीमारियों के कोई प्रकोप आते हैं तो उस स्थिति में ये उनसे लड़ने की क्षमता जल्दी खो देते हैं जिसके कारण इन्हें नुकसान होता है।”

“इनकी तुलना में देसी बीजों का समय के साथ उत्पादन भले ही कम हो; लेकिन इनसे तैयार होने वाले पौधों में सहनशीलता अधिक होती है। हाइब्रिड बीज को रासायनिक खादें चाहिए होती हैं, लेकिन देसी बीज जैविक खादों में भी अच्छा उत्पादन देते हैं। ” संजीव वर्मा ने आगे कहा। किसान मानसिंह गुर्जर का कहना है कि देसी बीज से उगाए जाने वाले फल, सब्जी और अनाज का स्वाद अच्छा होता है। वो जो लौकी उगाते हैं उसकी लंबाई 5 से 7 फीट तक होती है, कद्दू का वजन 40 किलोग्राम तक होता है। गेहूँ के दाने सामान्य गेहूँ से अलग मोटे होते हैं, वजन में अच्छा होता है। स्वादिष्ट भी होते हैं। फलों में पपीता के स्वाद का कोई जवाब ही नहीं होता। मूली , गाजर और कंद का कोई जवाब नहीं होता। यह बात उपयोग करने वाले लोग जान चुके हैं।

कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाने भी जाते हैं मानसिंह गुर्जर मानसिंह गुर्जर को बीजों के संरक्षण और संवर्धन की अच्छी जानकारी होने के चलते कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर से विद्यार्थियों को बीजों के संबंध में व्याख्यान देने के लिए बुलाया जाता है। इसके अलावा किसान और कृषि सम्मेलनों में भी हिस्सा लेकर किसानों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। वन मेलों और वन्य प्राणी जगत से जुड़ी प्रदर्शनियों में भी बीजों की प्रदर्शनी लगाते हैं। राजधानी भोपाल में 20 जनवरी 2024 को विभिन्न वन्य प्राणी संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं ने संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया था। इस 2 दिवसीय सम्मेलन में किसान मानसिंह गुर्जर ने बीजों की प्रदर्शनी लगाई थी। उनके कृषि फार्म पर प्राकृतिक खेती सीखने के लिए पंजाब, हरियाणा समेत अन्य राज्यों से किसानों के दल भी आते हैं।

राज्यपाल और मुख्यमंत्री कर चुके हैं सम्मानित मान सिंह के कामों को देखते हुए गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। राज्यपाल ने उन्हें आमंत्रित किया और उनके संरक्षण के बारे में विस्तार से चर्चा भी की। इसके अलावा मुख्यमंत्री रहते शिवराज सिंह चौहान, तत्कालीन कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने भी उनका सम्मान किया।

बीज बैंक के सामने चुनौतियाँ मान सिंह गुर्जर कहते हैं, “बीज संरक्षण के लिए पक्का मकान नहीं है, शेड वाले कमरे में ही बीज रखना पड़ रहा है। बारिश और ठंड के दिनों में नमी से बीज खराब हो जाते हैं; कांच के डिब्बों की कमी है, लोहे का स्ट्रक्चर भी पर्याप्त नहीं है इसलिए ज़्यादातर बीज पन्नी में लपेटकर कमरे के अंदर ज़मीन पर ही रखे हैं।” “आधुनिक बीज बैंक के हिसाब से कमरा चाहिए, पैकिंग के लिए सामग्री और मशीन की कमी है; यह खर्चीला काम है लेकिन रुपये नहीं है। बीज की किस्मों को बनाए रखने के लिए सभी 600 वैराटियों को हर साल खेतों में उगाना पड़ता है, इसलिए 2 एकड़ ज़मीन में खेती करने पर दो से ढाई लाख रुपये का खर्च आ रहा है; लेकिन आवक साल की 8 से 10 हज़ार रुपये ही है। ” उन्होंने आगे कहा।

सरकार से उम्मीदें वैसे तो सरकार किसानों के इनोवेशन को हाथों-हाथ लेती है, पहले भी ऐसा हो चुका है लेकिन किसान मानसिंह गुर्जर के बीज बैंक पर सरकार ने अब तक ध्यान नहीं दिया है। वो कहते हैं, “मैंने अब तक नर्मदापुरम कलेक्टर, कमिश्नर, कृषि मंत्री को आर्थिक मदद के लिए पत्र दिए हैं लेकिन कोई मदद नहीं मिली है।” “बीज बैंक से मुझे कोई फायदा नहीं है, यह प्रयास बीजों के मूल स्वरूप को बचाने का है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत ज़रूरी है; यह बात शासन को समझनी चाहिए और बीज बैंक का उपयोग किसानों के हितों के लिए करना चाहिए। ” मान सिंह ने कहा। नमर्दापुर कृषि विभाग के उप संचालक जेआर हेडाऊ गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “किसान मानसिंह गुर्जर को यथासंभव समय-समय पर सहयोग कर रहे हैं। जैसे कि किसी एग्रीकल्चर या वन मेले में स्टॉल के लिए जगह नि:शुल्क दिलवाते हैं; ताकि वह अपने बीजों का प्रचार प्रसार कर सके। किसी स्कूल कॉलेज और कृषि से जुड़े संस्थान में व्याख्यान के लिए उन्हें आमंत्रित करते हैं लेकिन सीधे तौर पर उन्हें आर्थिक मदद देने की कोई योजना हमारे पास फिलहाल नहीं है। हम इस पर विचार करेंगे।