जुलाई माह ख़रीफ की फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण:कृषि सम्बंधित मुख्य बातें

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जुलाई माह ख़रीफ की फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण महीनों में से एक है। ख़रीफ फसलों में कई मुख्य सब्जियों की खेती भी होती है। सब्ज़ियों की खेती करने वाले किसानों को जुलाई माह के रहते-रहते खेती के इन चरणों को निपटा लेना चाहिए: बैगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई का समय हैं।जुलाई माह जिसे आषाढ़-श्रावण भी कहते है, तपती हुई धरती को ठंडा करने के लिए मानसून वर्षा लेकर आता है व मौसम सुहावना बन जाता है ।

इस माह में कृषि सम्बंधित मुख्य बातें

तीन जरुरी बाते –

* जल निकास (सफल खरीफ फसल का आधार) – अचानक भारी बरसात होने की संभावना होती है तथा नुकसान से बचने के लिए मक्का, गन्ना, कपास, बाजरा व अन्य फसलों में सिंचाई के लिए बनाई नालियां को जल-निकास के काम में ला सकते है । खेत में पानी जमा होने से फसलों का भारी नुकसान हो सकता है । फालतू पानी को गांव के तालाब में डाल दें तथा जरूरत पड़ने पर सिंचाई के काम में लाएं ।

* जल प्रबंध (अधिक पैदावार का आधार) – धान में रोपाई के बाद हर हफ्ते पुराना पानी खेत से निकालकर ताजा पानी भरे जोकि २ इंच से ज्यादा गहरा न हो । यदि कम पानी उपलब्ध है तो हल्की सिंचाईयां करके खेत को सिर्फ गीला रखें ।

* नत्रजन प्रबंध ( पोषक तत्व का बचाव) – जुलाई माह में नत्रजन खाद देते समय वर्षा का विशेष ध्यान रखें । जमीन में काफी नमी होनी चाहिए ताकि यूरिया पूरी तरह धुल जाय । परन्तु अधिक नमी या तुरंत बरसात होने की स्थिति में यूरिया तबतक न डालें जबतक मोसम व जमीन में नमी उचित मात्रा में नहीं रह जाती अन्यथा बहुत सी नत्रजन पानी के साथ बह जायेगी ।

क्षेत्रों के अनुरूप करें खेती

मैदानी क्षेत्र (फसलों में)

धान:

धान की रोपाई इस माह समाप्त कर लें। रोपाई के लिए २०-३० दिन पुराणी पौध प्रयोग करें तथा र्पोई लाइनों में करें। धान में अंकुरण बाद चौड़ी पत्ती  वाले खरपतवारो की रोकथाम हेतु इथाक्सी सल्फुरोन (सनराइज) या क्लोमुरोन + मेट सल्फ़ुरोन (ओलमिक्स) या 2,4 -डी (ग्रीन वीड, वीडमार) का छिडकाव करे।

मूंगफली:

बुवाई माह के मध्य तक पूरी कर लें। औसतन प्रति हैक्टेयर ८०-१००किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है।

बाजरा:

भारत के उत्तरी क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के प्रारंभ होते ही बाजरे की बुवाई कर देते है। बुवाई के लिए जुलाई का दूसरा या तीसरा सप्ताह उत्तम है।

मक्का:

यदि मक्का की बुवाई नहीं हो पायी है तो शीघ्र कर लें। बुवाई के १५ दिन बाद पहली निराई कर देनी चाहिए।

ज्वार:

एक हैक्टेयर क्षेत्र की बुवाई के लिए १२-१५ केजी बीज की आवश्यकता होती है।

सोयाबीन:

उत्तरी, मैदानी और मध्य क्षेत्रों में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह का समय सर्वोत्तम है। सोयाबीन का प्रमाडित बीज ७५-८० किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बोना चाहिए। सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण पूर्व एलाक्लोर (लासो) या पेंडीमेथालिन (स्टॉम्प) या मेट्री बुजीन (सेंकर ) का छिडकाव अनुसंशित दर पर करें।

अरहर:

अरहर की कम समय में पकने वाली किस्मों की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में कर लें। एक हैक्टेयर के लिए १२-१५ किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।

गन्ना:

गन्ने को गिरने से बचाएं तथा खेतों से पानी निकलने की व्यवस्था करें। गन्ने में लगी बेल को काटकर अलग कर देना चाहिए।

पर्वतीय क्षेत्र (फसलों में)

धान:

एक जगह कम से कम दो या तीन पौधे रोपे जाएँ। उर्वरकों का प्रयोग जून माह में करें। इस माह धान की रोपाई कतारों (18 -20 सेमी की दूरी पर ) में करें। पिछले माह बोए गए धान में यदि कटुआ इल्ली या फौजी कीट का प्रकोप हो तो डाई क्लोरवास 800 मिली या  कुनाल्फोस 1 लीटर/हे की दर से छिडकाव करे। मक्का, जो मई या जून में बोई गयी थी, उसकी निराई-गुड़ाई करें । इस महीने भी  मक्का बाजरा, ज्वार, अरहर आदि लगाया  जा सकता  हैं।

मक्का:

मक्का की फसल से खरपतवार निकालते रहें। अतिरिक्त पौधों की छटाई कर लें। खेत में नमी का ध्यान रखें।

सोयाबीन:

खरपतवार निकालते रहें तथा पौधे से पौधे की आपसी दूरी ५-७ सेमी. कर दें।

मैदानी क्षेत्र (सब्जियों एवं फलों में)

टमाटर:

खेत की तैयारी अच्छी तरह कर लें। ८०किलोग्रम सुपर फास्फेट एवं ८० किलोग्राम पोटाश वाली उर्वरक ज़मीन में लगाएं।

बैंगन:

इस माह के प्रथम व द्वितीय सप्ताह से ही रोपाई करें तथा हलकी सिंचाई करें।

मिर्च:

फलों की तुडाई कर बाज़ार भेजने की व्यवस्था करें।

भिन्डी:

तैयार फलियों को तोड़कर बाज़ार भेजने की व्यवस्था करें। आवश्यकतानुसार निराई-गुडाई करें। जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

ग्वार:

तैयार फलियों को तोड़कर बाज़ार भेजने की व्यवस्था करें। फलियों को कच्ची अवस्था में तोडा जाए।

आम:

नए बाग़ लगाने हेतु रोपाई का कार्य प्रारंभ करें। फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें. बाग़ में जल निकास की व्यवस्था करें।

केला:

अवांछित पत्तियों को निकाल दें व पेड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें। नए बाग़ लगाने हेतु रोपाई का कार्य प्रारंभ करें।

अमरुद:

नए बाग़ रोपने का  का कार्य करें।

लीची:

बाग़ में जल निकास का प्रबंध करें। नए बाग़ रोपने का कार्य करें।

आडू:

पके फलो को तोड़कर बाज़ार भेजें।

पर्वतीय क्षेत्र (सब्जियों व फलों में)

आलू:

तैयार फसल की खुदाई कर कंडों को बाज़ार भेजने की व्यवस्था करें।

टमाटर:

फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुडाई व सिंचाई करें। तैयार फसलों को तोड़कर बाज़ार भेजें।

बैंगन:

फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुडाई व सिंचाई करें । तैयार फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें।

मिर्च:

फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुडाई व सिंचाई करें। तैयार फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें।

भिन्डी:

फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुडाई व सिंचाई करें।

सेब:

बाग़ में भूमि संरक्षी फसलों की बुआई करें।

आडू:

पके फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें।

आलूबुखारा:

फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें। भूरा विगलन की रोकथाम हेतु बेनलेट का छिड़काव करें।

खुबानी:

फलों को तोड़कर बाज़ार भेजें। भूरा विगलन की रोकथाम हेतु बेनलेट का छिड़काव करें।

नाशपाती:

कज्जली धब्बा रोग रोकथाम हेतु जीनेब व ब्लाईटाक्स-५० का छिड़काव करें।

धान

धान की रोपाई तो शुरू है । कम अवधि वाली बौनी किस्मों के लिए ६० दिन की पौध को जुलाई अन्त तक लगा सकते है परन्तु मध्यम अवधि वाली बौनी किस्मों को ७ जुलाई तक लगा लें । पौध को उखाडने से पहले क्यारी में पानी दें व बहुत सावधानी से पोध उखाडे ताकि कीचड़ हट जाये और जड़ों को नुकसान न हो । बासमती धान की रोपाई १-१७ जुलाई तक कर लें क्योंकि देर होने पर वटरा रोग लग जाता है । खाद की मात्रा मिट्टी जाँच के आधार पर दें । वौनी व मध्यम अविधि वाली किस्मों के लिए प्रति एकड ६ टन गोबर की खाद, १० कि.ग्रा. जिंक सल्फेट, २.५ बोरा यूरिया, ३ बोरे सिंगल सुपर फासफेट तथा 1 बोरा मयूरेट आफ पोटाश डालें तथा कम अवधि वाली किस्मों में यूरिया की मात्रा कम करके २ बोरे ही रखें । जिंक, फासफोरस तथा पोटास की पूरी मात्रा तथा १/३ नाईट्रोजन लेव बनाते समय दें । यदि नाईट्रोजन लेव के साथ न दें सके तो एक सप्ताह तक भी दे सकते है । बौनी तथा अधिक पैदावार वाली या देर से लगाई फसलों के लिए २-३ पौधे को एक जगह पर ६ x8 इंच की दूरी पर लगायें । लम्बी किस्मों के लिए ६ x 8 इंच की दूरी रखें । पौध 1 इंच से गहरी न लगाये, इससे जड़ जल्दी पकडती है तथा कल्ले और फूल समय पर आते हैं । यदि सूत्र कृमि की समस्या हो तो कार्बोपयूरोन (पयूराडान ३-जी) का प्रयोग करें । लेव बनाने से खरपतवार नियंत्रण हो जाता है यदि फिर भी ये हो तो १७-१७ दिन बाद पैडीवीडर का प्रयोग करें । रसायनों दवारा भी इनका नियंत्रण कर सकते है जैसे कि व्यूटाक्लोर, थायोबैनकार्व, पैडोमेथालिन, एनिलोफोस, प्रेटिलाक्लोर तथा पलुक्लोरानिन । दानेदार दवाई को पौध रोपण के २-३ दिन बाद तक २ इंच गहरे खडे पानी में एकसार विखेर दें तथा तरल दवाई को ६० कि.ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति एकड छिडकें । रोपाई के बाद प्रति सप्ताह पानी का निकास करके ताजा पानी भरें तथा एक बार में २ इंच से अधिक गहरा न हो । सिमित सिंचाई की अवस्था में धान के खेत को बार-बार पानी देकर गीला रखें । रोपाई के १० दिन बाद जब पौधे ठीक से जड़ पकड लें तो पानी रोकलें इससे जड़े अच्छी विकसित हो जाती है । कल्ले निकलने के समय भी पानी रोके ताकि वेकार कल्ले ज्यादा न आये । यदि भूमि ऊसर है तो मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार १-२ भारी संचांई करे तथा पानी को दूसरे खेत में न जाने दें । पोध भी ३०-४० दिन की हो तथा ३-४ पौधे इकट्ठे लगायें तथा समय से एक सप्ताह पहले लगायें इससे ऊसर भूमि में पौधे की मात्रा तथा कल्ले ठीक बने रहेगें । ऊसर भूमि में जिंक सल्फेट २० कि.ग्रा. तथा नाईट्रोजन ३ बोरे प्रति एकड दें इससे शुरू की बढ़वार तथा बाद की पैदावार अच्छी रहेगी । धान की जड़ की सूण्डी जमीन में जड़ों को जुलाई से अगस्त तक खाती है इससे पोधे पीले, कम फुटाव तथा छोटे रह जाते है । इसकी रोकथाम के लिए १० कि.ग्रा. कार्बोपयूरान (पयूराडान-3 जी) या ४ कि.ग्रा. (थाइमेट-१० जी) प्रति एकड डालें । इस दवाई को यूरिया के साथ भी विखेर सकते है । पत्ता लपेट सूण्डी, हरे रंग की होती है तथा पत्ते को अपने ऊपर लपेट कर जुलाई से अक्टूबर तक खाती है । इसकी रोकथाम के लिए प्रति एकड १० कि.ग्रा. मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत घूडा या २०० मि.ली. मोनोक्रोरोफास ३६ एस एल या ३५० मि.ली.एण्डोसल्फान ३५ ईसी को २०० लीटर पानी में मिलाकर फसला पर छिडके । इस दवाई को छिडकने से पत्ती और पौधों का तेला तथा गंधी या मंलगा की भी रोकथाम हो जाती है । तना छेदक भी इस माह आक्रमण करता है तथा इससे वालियां सूख जाती है और दाने नहीं बनते । इसे भी मिथाइल पैराथियान ५० ई.सी ५०० मि.ली. / मोनेक्रोटोफास ३६ एस एल २५० मि.ली./ क्लोरपाईफास २० ईसी 1 लीटर रोपाई के ७० और ७० दिन बाद २ बार छिडके । धान की बीमारियों से बचाव के लिए रोगरोधक तथा प्रमाणित बीज ही चुने तथा बीजोपचार करें ।

गन्ना

फसल में शेष बची एक बोरी यूरिया जुलाई में मानसून वर्षा आने पर डालें तथा २७ दिन के अन्तर पर सिंचाई करें । जुलाई माह में चोटी बेधक के आक्रमण से गोभ के पत्तों में सुराख और बीच में धारिंया बन जाती है तथा पौधे के ऊपर गुच्छा सा बन जाता है । कीट के अण्डों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें । पिछले माह बताई विधि से रसायन प्रयोग करें । गुरदासपुर बंधक जुलाई से सितम्बर तक हानि पहुंचाता है जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूख जाता है और कीडा लगने वाली जगह से मामूली झटका देने से टूट जाता है । ऐसे गन्ने को हर सप्ताह काटकर नष्ट कर दें । खेत में जुताई करे ढूंठ नष्ट कर दें ।

कपास

फसल में यूरिया की आधी मात्रा ( अमेरिकन में २/३ बोरी, संकर कपास में 1 बोरी तथा देशी कपास १/२ बोरी ) वोकी आने पर जुलाई अन्त तक डाल दें । कपास में बीजाई के ४०-४७ दिनों के बाद सूखी गोडाई के पश्चात ट्रैफलान ०.८ लीटर / एकड या स्टोम्प १.२७ लीटर / एकड के २००-२७० लीटर पानी में घोल से उपचार के बाद सिंचाई करने से भी वार्षिक खरपतवारों का उचित नियंत्रण हो जाता है । जुलाई में सिंचाई वर्षा के हिसाब से २-३ सप्ताह के अन्तर पर करें । फूल आने पर सिंचाई अवश्य करें नहीं तो फूल झड़ जायेगें तथा कम टिंडे बनेंगे और पैदावार में कमी हो जायेगी । कपास में निराई-गोडाई करते समय खडी फसल की कतारों में डोलियां बना दें जिसमें २७ प्रतिशत पानी की बचत होती है, पोषक तत्वों का उपयोग भी वेहतर होता है तथा पैदावार भी अच्छी होती है । अधिक वर्षा होने से बेकार पानी का निकास भी हो जाता है तथा कपास सेम से भी बच जाती है । जुलाई माह में हरा तेला, रोयदार सुण्डी, कतरा, चितीदार सुण्डी, कुबडा कोडा आदि पत्तों में से रस चूसकर पौधे की बढ़वार तथा उपज दोनों को कम करती है । इन कीडों की संख्या जब आर्थिक कगार पर पहुंच जाये जैसे एक पत्ते पर दो शिशु हरे तेले तथा २० प्रतिशत पत्तियां किनारों से मुडने लगे या पीली पड़ने लगे । कातरा व अन्य पत्ते खाने वाले कीडे एक पौधे पर एक तथा चित्तिदार सुण्डी 1 प्रतिशत टहनियों को प्रभावित करें तो इसके नियंत्रण के लिए ६०० मि.ली. एण्डोसल्फान ३५ ईसी या ६०० ग्रा. काबॅरिल १० डब्ल्यु.पी या ६०० मि.ली. फेनोट्रोथियान ५० ई.सी. या ६५० मि.ली. किवळनलफास २५ ई.सी., १५०-१७५१ लीटर पानी में प्रति एकड छिडकें । चित्तीदार सुण्डी, कतरा व अन्य कीडों के अण्डों व सुण्डियों से प्रभावित पत्तों व टहनियों को कीडो सहित तोडकर गहरा दबा दें या जला दें । खेत में हर सप्ताह पोधों के कीडों का निरीक्षण करें तथा आर्थिक कगार पहुचते ही रोकथाम शुरू करें । कपास में पोध रोग, छेदक घब्बा रोग, जीवाणु अंगमारी, एन्सोंकनोज, जड़य़ालन, उखेडा, ग्रेमिल्डयु, टिण्डा गलन तथा पत्ती मरोड प्रमुख विमारियां लगती है । विमारियों की रोकथाम के लिए बीजाई के ६ सप्ताह बाद जुलाई शुरू में प्लेण्टोमाइसिन (३०-४० ग्रा. / एकड) या स्ट्रैप्टोसाइकिलन (६- ८ ग्रा./एकड) व कापर आक्सीक्लोराईड (६००-८०० ग्रा./ एकड) का १५०-२०० लीटर पानी में घोलकर १५-२० दिन के अन्तर पर लगभग ४ छिडकाव करें । देशी कपास में ग्रैमिल्डयु रोग के लिए २ ग्राम प्रति लीटर पानी में वाविस्टन का छिडकाव करें । जड़गलन रोग वाली जमीन में कम से कम 3 वर्ष तक कपास न लगायें ।

मक्का

हरियाणा में मक्का सिंचित क्षेत्रों में २० जुलाई तक तथा वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में मानसून आने पर बोया जा सकता है । एक एकड के लिए ८.७ कि.ग्रा. बीज २७ फुट दूर लाईनों में तथा ८ इंच दूरी पौधे में रखें । बीज प्रमाणित किस्मों जैसे कि गंगा-संकर, बिजय, अगेती-७६, एच.एच.एम-१ व एच.एच.एम-२ को ही लगाये बाकीं क्रियायें मई व जून की खाद पत्रिका में बताई जा चुकी हैं । वर्षा न होने की स्थिति में पानी देना आवश्यक है खासकर फूल तथा दाने बनने की अवस्था में । जहां मक्का मई माह में बोया गया है वहां वर्षा का पानी निकास के लिए नालियां भूमि की ढलान के हिसाब से ही बनाये । मक्का में तना छेदक की सुण्डियां तनों मे छेद करके पैदावार कम कर देते है । रोकथाम के लिए पहला छिडकाव उगने के १० दन बाद २०० ग्राम कार्वेरिल ७० डब्ल्यु पी या २७० मि.ली. एण्डोसल्फान ३७ ईसी को २०० लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड छिडकाव करें । दूसरा छिडकाव २० दिन, फिर ३० दिन तथा चौथा ४० दिन उगने के बाद करें । हर बार दवाई की मात्रा २०-३० प्रतिशत बढ़ा दें ।

बाजरा

बाजरे की बिजाई मध्य जुलाई या मानसून की पहली वर्षा पर कर सकते है । हरियाणा के लिए एच.एच.वी-७०, ६०, ६७, ६८, ९४, एच-सी-४, १० व डब्ल्यु.सी.सी-७७ संकर किस्में हैं । पंजाब के लिए पी.एच.वी-४७ व १४१ संकर किस्में है । १.७से २ कि.ग्रा. बीज को १.५ फुट दूर लाईनों में पर्याप्त नमी वाली मिट्टी में १/२ इंच गहरा बोये । बीजाई के लिए रिजर-सीड ड्रिल उपयुक्त पाई गई । दोहरी पंक्तियों के लिए लाईनों में 1 फुट तथा मेढ़ में २ फुट का अन्तर रखें । बीजाई के ३ सप्ताह बाद पोधे के बीच ७ इंच का फासला बळनाये । बाजरे की नर्सरी भी तैयार कर सकते है । एक एकड में पोध लेळेने के लिए २५ x १० मीटर क्षेत्र में ६०० ग्राम से 1 कि.ग्रा. बीज बोयें । चीटियों को रोकने के लिए नर्सरी की चारों ओर मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत के घूडा की ४ इंच चौडी पट्टी बनाएं । कोडिया रोग के लिए ०.२ प्रतिशत ब्लाईटाक्स या मैन्कोजव का छिडकाव करें तथा समय-समय पर पानी ठें । तीन सप्ताह की पोध की रोपाई करें तथा जडो को हानि न पहुंचाएं । संकर बाजरा के लिए वारानी क्षेत्रों में १/२ बोरा यूरिया तथा 1 बोरा संगल सुपरफास्फेट तथा १० कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति एकड बीजाई के समय दें । बीजाई के ३ सप्ताह बाद निराई-गुडाई करके खरपतवार निकाल दें तथा जल निकास प्रबंध ठीक रखें । फिर १/२ बोरा यूरिया पोध छंटाई के समय दें । बीमारियों की रोकथाम के लिए बीजोपचार करें तथा रोगग्रसत पोधों को उखाडकर नष्ट कर दें।

दालों की खेती

मूंग, उडद, लोबिया, अरहर, सोयाबीन – जुलाई के पहले सप्ताह में मानसून की वर्षा के साथ ही मूंग, उडद तथा लोबिया फसलों की बीजाई कर देनी चाहिए । अच्छे जल निकास वाली दोमट या हल्की दोमट मिट्टी में दो जुताईयों के बाद सुहागा लगाकर तथा घासफूस निकाल दें । मूंग व उडद के लिए ६ – ८ कि.ग्रा. तथा लोबिया के लिए १२ कि.ग्रा. बीज प्रति एकड लगायें । बीजाई से पहले बीज को कप्तान या थिराम ३ ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें फिर राइजीवियम की टीका लगायें । अधिक पौधे उगने पर विरला करें तथा ४ इंच का अन्तर रखें । मूंग उडद तथा लोबिया के अलग-अलग राइजोवियम कल्चर से उपचारित बीज को छाया में सुखाकर 1 से १.७ फुट दूरी पर लाईनों में बोये । मूंग के लिए आशा और के-८७१, उडद के लिए टी-९ तथा लोबिया की एफ एस६८ किस्में हरियाणा के लिए उपयुक्त है । पंजाब में मूण की पी.वी.एम-१, एम.एल-६१३, एम.एल-२६७ तथा उडद के लिए मास ३३८ व मास १-१ किस्में हैं। बीजाई के समय १० कि.ग्रा.यूरिया तथा दो बोरे सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड डालें । मक्का-गेहूं-मूंग फसल चक्र में मूंग में खाद डालने की जरूरत नहीं है । खरपतवार के नियंत्रण के लिए बीजाई के ३ सप्ताह बाद निराई गुडाई करें । अरहर की यू.पी.ए.एस-१२०, मानक तथा पारस किस्में जुलाई में भी बोई जा सकती है । बाकीं क्रियायें मई व जून माह में बताई जा चुकी है । सोयाबीन में निराई-गुडाई करके घासफूस निकाल दें । यदि वर्षा न हो तो हल्की सिंचाई करते रहें । दलहनी फसलों में कीडों के लिए ४०० मी.ली. मैलाथियान ७० ईसी २७० लीटर पानी में घोलकर छिड़कें । इससे पीला मोजैक भी नियंत्रित हो जाता है । बीमारियों में, पत्तों के धब्बों का रोग के लिए ब्लाइटाक्स ७० या इण्डोफिल एम-४७ की ६०० – ८०० ग्रा. तथा पत्तों का जिवाणु रोग के लिए ६०० – ८०० ग्रा. कापर आक्साक्लोराइड २०० लीटर पानी में मिलाकर छिडके ।

मूंगफली

की बीजाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर सकते है । बाकी क्रियायें जून माह में बता चुके है । कम वर्षा वाले क्षेत्रों में २-३ सिंचाईयों जरूरी है विशेषकर फूल तथा फल आने पर । हानिकारक कीडों जैसे कि कतरा के अंण्डों तथा छोटी सुण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें तथा बडी सुण्डियों के लिए ७०० मी.ली. एण्डोसल्फान ३७ ईसी को २७० लीटर पानी में छिडकें । सफेद लट तथा टीमक के लिए १७ मी.ली. क्लोरपायरिफास २० ईसी से बीज उपचार करके बोयें । चेपा के लिए २०० मी.ली. मैलाथियान ७० ईसी को २०० लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड छिडकें ।

तिल

तिल को जुलाई के प्रथम सप्ताह में लगा सकते है । हानिकारक कीडों के लिए कार्बरिल ७० डब्ल्यु पी के ६००, ६७० तथा ७२५ ग्रा. मात्रा को २०० लीटर पानी में क्रमशः २५, ४० व ५५ दिन के अन्तर पर छिडके । हरा तेला तथा फायलोंडी रोग २०० मी.ली. मैलाथियान ७० ईसी २०० लीटर पानी में २-३ सप्ताह के अन्तर पर छिडके । झुलसा रोग के लिए ६०० ग्रा. मैन्कोजेव प्रति एकड १०१७ दिन के अन्तर पर २५० लीटर पानी में छिड़कें । जड़ तथा तना गलन रोग थाइरम बीजोपचार से नहीं लगता ।

सब्जियां

जुलाई माह में करेला, तोरी, फैंचबीन, टमाटर, फूलगोभी, बैंगन, मिर्ची की फसलें ले सकते है । करेला की पूसा दो मौसमी व पूसा विशेष किस्में जुलाई के पहले सप्ताह तक लगा सकते है । ३ कि.ग्रा. बीज लेकर १२-२० घंटे तक भिगायें तथा १.७ फुट चौडी नाली के दोनों तरफ 1 से १.७ फुट दूरी पर बीजें । नालियों की आपसी दूरी ६ फुट रखें । १० टन देशी खाद ,१/२ बोरा यूरिया, १.७ बोरे सिंगल सुपर फासफेट तथा १/२ बोरा म्यूरेट आफ पोटाश आखिरी जुताई के समय करें । बीजाई के समय कीडों की रोकथाम के लिए पयूराडान मिट्टी में मिला दें । ६० – ७० दिन में ७००-६०० कि.ग्रा. पैदावार मिल जाती है । खीरा – इसकी जापानी लम्बी ग्रीन, स्ट्रेट ऐट तथा पूसा सनयोग किस्में १००० कि.ग्रा. प्रति एकड पैदावार दे देती है । 1 कि.ग्रा. बीज को २ से ३ फुट दूर पौधे तथा ७-६ फुट दूर नालियां बनाकर बीजें । कीडों की रोकथाम के लिए २ ग्राम इण्डोसल्फान प्रति लीटर घोल छिडकें । तोरी – की पूसा चिकनी, पूसा सुप्रिया और पूसा नस्दार किस्में ७ कि. ग्रा. बीज लेकर २ से ३ फुट दूर पोधों को १२ फुट नालियों को दोनों तरफ लगायें । मिंडी – की पूसा सावनी, पूसा ए-४ किस्में ८०० कि.ग्रा. पैदावार देती हैं । ४ कि.ग्रा. बीज को ०.०७ प्रतिशत वावीस्टीन घोल में १२ घंटे तक भिगोकर पोधों के बीच 1 फुट तथा लाईनों में 1 से १.७ फुट रखें । खाद खीरे के फसल बराबर रखें । सुत्रकृमि के लिए एलडीकार्ब बीजाई से पहले सप्ताह में डालें तथा खेत को अच्छी धूप लगाकर बोयें । खेतों को खाली रखकर तथा गेहूं, मक्रका आदि में फसल चक्र अपनायें । अच्छी किस्में पूसा रूबी, पूसा-१२०, पूसा अर्ली डवार्फ, पूसा शीतल, पूसा उपहार, पूसा गौरव, पूसा सदावहार तथा पूसा हाब्रिड-२ है। जुलाई की फसल नवम्बर में तैयार हो जाती है तथा १००० कि.ग्रा. पैदावार देती है । नर्सरी के लिए २००-२७० ग्राम बीज को 1 ग्राम कैप्टान या थिराम से उपचारित कर १७ x ३ फुट साईज के ८ ऊंची क्यारियों में 1 इंच से कम दूरी पर लाईन में लगाये और हल्का पानी फब्बारे से देते रहें । पोध ६ इंच के होते ही खेत में लगा दें । खेत तैयार करते समय १० टन देसी खाद, 1 बोरे यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फासफेट और 1 बोरा म्यूरेट आफ पोटाश डालें । रोपाई के २० दिन बाद 1 बोरा यूरिया और डाल दें । आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें । बैंगन – की नर्सरी जुलाई में लगाने से अक्टूबर में सब्जी मिलने लगेगी । अच्छी किस्मों में पूसा भैरव, पूसा पर्पल लोग, पूसा क्रांती, पूसा पर्पल कल्सटर, पूसा अनुपम, पूसा बिंदु, पूसा उत्तम, पूसा उपकार, पूसा हाब्रिड-६ व ९ हैं जोकि १,७००-२७०० कि.ग्रा. पैदावार देती है । नर्सरी के लिए १०० ग्राम बीज को बीमारियों की रोकथाम के लिए २.७ ग्राम थिराम या कैप्टान से उपचारित करें । फिर २,४-डी के २ पीपीएम घोल में २४ घंटे तक भिगोएं इसमें पैदावार बढ़ जाती है । बैगन के लिए खेत ४-७ जुताई करके १० टन देसी खाद, १/२ बोरा यूरिया, ३ बोरे सिंगल सुपर फासफेट, और 1 बोरा म्यूरेट आफ पोटास डाल दें । १/२ बोरा यूरिया रोपाई के ३ सप्ताह बाद तथा १/२ बोरा ७ सप्ताह बाद डालें । आवश्यकतानुसर सिंचाई करते रहें । ६ इंच पोध का २ फुट दूरी पर लाईनों में लगायें । चिटियों के लिए ०.३ प्रतिशत मिथायल पैराथियान छिडकें । मिर्च – जून में लगाई नर्सरी जुलाई में खेत में रोप दें । पूसा ज्वाला, व पूसा सदाबहार किस्मों में बहुत सी बिमारियां तथा कीड़े नहीं लगते तथा ३७०० कि.ग्रा. पैदावार दे सकते है । ७००-६०० ग्राम बीज से तैयार पोध को १.७ से २ फुट पौधे व लाईनों में दूरी रखकर रोपाई करें । २० टन देसी खाद 1 बोरा यूरिया, १.७ बोरे सिंगल सुपरफासफेट तथा 1 बोरा म्यूरेट आफ पोटास रोपाई के समय खेत में डालें ।

बैंगन

रोपाई के समय बैंगन में 50 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फेट व 50 किग्रा पोटश, मिर्च में लगभग 35 किग्रा नाइट्रोजन, लगभग 40 किग्रा फॉस्फेट व 40 किग्रा पोटाश तथा फूलगोभी में 40 किग्रा नाइट्रोजन 60 किग्रा फॉस्फेट 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। बैंगन की रोपाई 60 सेंटीमीटर, मिर्च को 30-45 सेंमी और अगेती फूलगोभी को 30 सेंमी की गहराई पर रोपें। यदि खेत में पानी रुकने की सम्भावना हो तो अगेती फूलगोभी की रोपाई मेड़ पर करें।

ख़रीफ की प्याज़

ख़रीफ की प्याज़ के लिए पौधशाला में बीज की बोआई जुलाई के पहले पखवाड़े से पहले पूरी कर लें। प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए बीजदर 12-15 किलोग्राम होगी। चौलाई की फसल की बोआई पूरे महीने की जा सकती है। एक हेक्टेयर की बोआई के लिए 2-3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी।

कद्दूवर्गीय सब्जियां

कद्दूवर्गीय सब्जियों में बोआई के लगभग 25-30 दिन बाद पौधों के बढ़वार के समय प्रति हेक्टेयर 15-20 किग्रा नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिग करें।लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, आरा तोरी, करेला व टिण्डा की बोआई इस समय में भी की जा सकती है। पिछले माह में बोई गई लौकीवर्गीय सब्जियों को मचान बनाकर सहारा दें। सभी सब्जियों में उचित जल निकास की व्यवस्था करें।

भिन्डी और अरबी

बरसात वाली भिण्डी और अरबी की बोआई पूरी कर लें। पहले बोई गयी भिण्डी की फसल में बोआई के 30 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 35-40 किलोग्राम नाइट्रोजन (76-87 किलोग्राम यूरिया) की टाप ड्रेसिंग करें।

हल्दी

हल्दी में प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन (87 किग्रा यूरिया) बोआई के 35-40 दिन बाद कतारों के बीच में डालें। अदरक में बोआई के 40 दिन बाद प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की 25 किलोग्राम मात्रा (54 किग्रा यूरिया) मिटटी चढ़ाते समय दें।

कुंदरू

कुंदरू की रोपाई के लिए यह उपयुक्त समय है। ग्रीष्म ऋतु में कतार से कतार व पौधे से पौधे की 3 मीटर की दूरी पर 30 गुणा 30 गुणा 30 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदें। उनमें 2-3 किग्रा अच्छी प्रकार से सडी़ गोबर की खाद, नेडप कम्पोस्ट, यूरिया 50 ग्राम, सुपर फॉस्फेट 200 ग्राम प्रति गड्ढ़े की दर से अच्छी तरह मिटटी व बालू में मिलाकर 10 सेंमी की ऊंचाई तक भर दें। वर्षा प्रारम्भ होते ही कलिकायुक्त विकसित कलमों को इन गड्ढों में रोप दें।

चारा

किसान भाई जुलाई के शुरू में चारे वाली फसलें जैसे कि ज्वार की उन्नत किस्में, एच.सी.१३६, १७१,व २६०, हरियाणा-चरी-३०८ जोकि २०० क्विन्टल हरा चारा तथा ६ क्विन्टल बीज देती है । ग्वार की एफ.एस-२७७, एच.ए-११९, एच.एफ.जी-१५६ किस्में तथा लोवियां की एफ.ओ.एस 1, न.१०, एच.एफ.सी-४२-१, सी.एस-८८ तथा संकर हाथी घास की नेपियर बांजरा संकर-२१ मौनसून के आते ही लगा दें ।

बागवानी

जुलाई में आप आवंला किस्में बनारसी व चकैया : आडू किस्में सरबती, सफेदा, मैचलैस, सनरैड ; फालसा स्थानीय किस्में : अमरूद किस्में इलाहबादी सफेदा, बनारसी सुखी, लखनऊ – ४९ तथा पपीता किस्में पूसा डिलीसियस , पूसा डर्वाफ , हनिड्यू लगा सकते हैं । नीबू जाति के पौधों को सिल्ला, लीफ माईनर व सफेद मक्खी से बचाव के लिए ७७० मि.ली. आक्सीडमेटोन-मिथाइल २७ ईसी ७०० लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें । तने व फल के गलने का बचाव बरसात की पहली बौछार के तुरंत बाद ०.३ % कापर आक्सीक्लोराईड का छिडकाव करें । आम के बागों में सभी वेढगे फूलों के गुच्छे काट दें तथा पौधों को अच्छी तरह खाद दें । फूल – क्यारियों में वर्षा का पानी खडा न रहने दें । बरसाती फूलों के रोपाई पूरी कर लें । गुलदाउदी का वर्षा से बचाव करें । बालसम और कैना लगा सकते है । घास के लान को ऊचा काटें ताकिं वर्षा के पानी में डूबने से खराब न हों । फूल वाले पेडों की परूनिंग कर सकते हैं तथा कटिंग लगा सकते हैं ।