दालों के मामले में भारत की बेहाली किसी से छिपी नहीं है. अरहर, मसूर और उड़द के आसमान पहुंचे दामों ने आम उपभोक्ताओं की परेशानियां बढ़ाई हुईं हैं. तो वहीं इससे किसानों को भी फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है. इसके पीछे की वजह ये ही है कि भारत में खपत की तुलना में दालों का उत्पादन बेहद ही कम है. कुल मिलाकर दालों के मामले में भारत बेहाल है. ऐसे में किसानों पर जिम्मेदारी दालों के मामले में भारत की नैया पार लगाने की है.
इसी कड़ी में भारत सरकार की भी तैयारी है, जिसके तहत 100 फीसदी दालों की MSP पर खरीद होगी. आइए इसी कड़ी में दालों में इंडिया की बेहाली की कहानी समझते हैं, इसकी वजह जानते हैं. साथ ही जानेंगे कि कैसे किसानों पर भारत को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी है.
दालों में भारत का हाल
दालों के मामले में भारत के हाल खस्ता हैं. ये सच है, लेकिन ये भी सच है कि भारत ग्लोबली दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत दुनिया में उत्पादित कुल दालों का 25 फीसदी उत्पादन होता है, लेकिन इसके उलट दुनिया में कुल उत्पादित दाल का 27 फीसदी दालों की खपत भारत में हाेती है.आंकड़ों में समझें तो साल 2023-24 में 234 लाख टन दालों का उत्पादन भारत में हुआ था, जिसमें चना और मूंग की हिस्सेदारी अधिक थी, जबकि भारत में सालाना 280 लाख टन से 300 लाख टन दालों की खपत हाेती है.
दाल इंपोर्ट कर रहा इंंडिया
कुल उत्पादन की तुलना में भारत में दालों की खपत अधिक है. ऐसे में दाल उत्पादन और खपत के इस अंंतर को पाटने के लिए भारत दाल इंपोर्ट करता है. आंकड़ों में भारत के दाल इंपोर्ट को समझें तो साल 2023-24 में भारत ने दालों की अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए 45 लाख टन दालें इंपोर्ट की थी, जिसमें अरहर, मलका और उड़द की हिस्सेदारी अधिक थी.
किसानों का नुकसान, दालों में बेहाली का कारण
क्या भारत में दालों की अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है. ये सवाल तब और लाजिमी हो जाता है, जब भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक है. ऐसे में भारत की दालों पर विदेशों पर निर्भरता पर विचार करने की जरूरत है. अगर इस पूरे वाकये पर विस्तार से बात करें तो भारत में चने और मूंग की पैदावार घरेलू खपत के अनुपात में ठीक है, लेकिन अरहर, उड़द और मसूर का उत्पादन बेहद ही कम है.उत्पादन में इस कमी के पीछे कई कारण हैं, जिसमें प्रति हेक्टेयर कम उत्पादन, किसानों से कुल उत्पादन का सिर्फ 25 फीसदी खरीदारी का नियम, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट जैसे नियम प्रमुख है, जो किसानों का नुकसान बढ़ाते रहे हैं, ऐसे में किसानों ने इन दालों की खेती से दूरी बनाई और भारत दालों के मामले में बेहाल होता गया.
किसानों पर नैया पार लगाने की जिम्मेदारी
भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन भारत अब दालों के मामले में आत्मनिर्भरता का सपना देख रहा है, इसके लिए मोदी सरकार 3.0 ने साल 2027 तक का टारगेट रखा और किसानों पर नैया पार लगाने की जिम्मेदारी है. इसी कड़ी में बीते दिनों नवनिर्वाचित केंद्रीय व किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दलहन उत्पादक राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ पहली वीडियो कॉन्फ्रेंस आयोजित की.
इस दौरान शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश अरहर, उड़द और मसूर के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है और 2027 तक आत्मनिर्भरता हासिल करने का लक्ष्य है. इसके लिए उन्होंने प्रति हेक्टेयर दालों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया. साथ ही केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री राज्य सरकारों से अनुरोध किया कि वे चावल की फसल कटने के बाद दालों के लिए उपलब्ध परती भूमि का उपयोग करें.
100 फीसदी दालों की MSP पर खरीदारी की तैयारी
दालों के मामले में आत्मनिर्भरता पाने के लिए भारत सरकार प्रयासरत है. इसी कड़ी में भारत सरकार अब अरहर, उड़द और मसूर की 100 फीसदी खरीदारी MSP पर करेगी. यानी जितना इन दालों का उत्पादन होगा, वह MSP पर खरीदा जाएगा. इसको लेकर केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यों के कृषि मंंत्रियों को आश्वस्त किया है. ये पूरी कवायद किसानों को दलहनी फसलों की तरफ मोड़ने के लिए भी है. असल में केंद्र सरकार नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से इन दालों की 100 फीसदी खरीदारी करने की योजना बना रही है. इसके लिए ई-समृद्धि पोर्टल शुरू किया गया है. पोर्टल पर पंजीकृत किसानों से एमएसपी पर इन दालों की खरीदी की जाएगी.