सफलता की कहानी:परंपरागत खेती छोड़ आधुनिक फार्मिंग से सालाना 80 से 90 लाख रु. की कमाई

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अधिक मुनाफे के लिए किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक खेती को अपना रहे है। आइए आज आपको एक ऐसे किसान परिवार के बाते में बताने वाले है। जो परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक खेती से सालाना 80 से 90 लाख रुपए सालाना की कमाई कर रहे। किसान सालाना का कहना साल 2006 से पहले हम भी परंपरागत खेती करते थे, जिसमें लागत ज्यादा और मुनाफा कम होता था।

फिर पांच भाइयों ने सोचा कि क्यों न आधुनिक तरीके से खेती की जाए। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज 300 बीघा में सीताफल, अमरूद, खीरा-ककड़ी, गुलाब के फूल की खेती के साथ ही नर्सरी में अलग-अलग फलों के पौधे तैयार कर रहे हैं। इससे 80 से 90 लाख रुपए सालाना इनकम हो रही है।’ यह कहना है किसान विनोद पाटीदार का। विनोद पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं और सभी खेती कर रहे हैं। आइए जानते है इनकी पूरी डिटेल..

किसान परिवार की सफलता की कहानी

रतलाम जिले के पिपलौदा तहसील के कुशलगढ़ गांव में रहने इन्हीं पाच भाइयों की कहानी पढ़िए। हीरालाल, बालमुकुंद, खेमराज, खुशालचंद्र और विनोद पाटीदार उन्नतशील किसान के रूप में जाने जाते हैं। भाइयों में चौथे नंबर के खुशालचंद्र पाटीदार बताते हैं कि 5 साल पहले महाराष्ट्र से सुपर गोल्डन सीताफल के 4 हजार पौधे लाकर 20 बीघा में लगाए थे।

एक पौधा 70 रुपए का पड़ा था। अब तक तीन बार सीताफल की फसल ले चुके हैं। अभी पौधों पर फूल लगे हैं। सितंबर-अक्टूबर में चौथी बार सीताफल की फसल लेंगे। हर बार सीताफल का टेस्ट भी अलग रहता है। बाजार में 50 से 70 रुपए किलो बिकता है। 

कई व्यापारी खेत से ही सीताफल खरीदकर ले जाते हैं। खासकर राजस्थान के जयपुर के व्यापारी। पौधे का विशेष ध्यान रखते हैं। हर एक पौधा 12 बाय 10 की दूरी पर लगाए हैं, जिसमें ड्रिप सिस्टम से पौधों की सिंचाई की जाती है। पौधे की देखरेख में प्रति बीघा 12 से 15 हजार रुपए का खर्च आता है। हमारे बगीचे में सीताफल का एक फल 500 से 700 ग्राम का होता है।

ऐसे शुरू की अमरूद की खेती

किसान खुशालचंद्र पाटीदार बताते हैं कि एक बार वीएनआर कंपनी के मैनेजर वीएनआर अमरूद आधा कटा लेकर आए थे। जब टेस्ट किया, तो अच्छा लगा। फिर हम लोग भी वीएनआर अमरूद की खेती करने का सोचा।

उसके बाद छत्तीसगढ़ के रायपुर से वीएनआर के पौधे खरीदे। एक पौधा 150 रुपए का पड़ा। 2012 में कम संख्या में अमरूद के पौधे लगाए। धीरे-धीरे पौधों की संख्या बढ़ाते चले गए। आज 80 बीघा में अमरूद के 14 हजार पौधे लगे हैं। सितंबर-अक्टूबर में फल आएंगे।12 महीने पौधों की देखरेख करनी पड़ती है। हमारे यहां दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के व्यापारी अमरूद खरीदने आते हैं। अमरूद की कटिंग से पैकिंग कर मंडी और व्यापारियों तक पहुंचने में एक किलो पर 25 रुपए का खर्च आता है, जिसे हम 35 से 40 रुपए तक बेचते हैं।

बगीचे में अमरूद के एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 12 बाय 6 फीट है, ताकि पौधों की डालियां एक दूसरे से न टकराएं। हम लोगों ने पौधों के सिंचाई के लिए ऑटोमैटिक ड्रिप सिस्टम से लगाई है। इसमें पहले से टाइमिंग सेट कर देते हैं, जिससे टाइम टू टाइम पानी ऑटोमैटिक ऑपरेट होकर पौधों को मिल जाता है।

नर्सरी में पौधे भी तैयार कर रहे पांचों भाई

पांचों भाई फलों की खेती के साथ-साथ अलग-अलग फलों के पौधे भी तैयार कर रहे हैं। गोल्डन नर्सरी के नाम से तैयार नर्सरी में पिंक ताइवान (अमरूद) के पौधे, सीताफल गोल्ड, ड्रैगन फ्रूट, चीकू, आम के अलग-अलग वैरायटी के पौधे तैयार करते हैं। डेढ़ एकड़ में नर्सरी तैयार कर रखी है। ड्रिप टेक्निक से पौधों की सिंचाई की

पहाड़ी की बंजर भूमि को पॉली हाउस में बदला

सबसे छोटे भाई विनोद पाटीदार के पास 25 एकड़ में फैले 25 पॉली हाउस की देखरेख का जिम्मा है। विनोद बताते हैं कि हमेशा नया सोचा है। नया लक्ष्य लेकर चलते हैं कि कुछ नया किया जाए। इसी ध्येय को ध्यान में रख 25 पॉली हाउस तैयार किए हैं। वर्तमान में पॉली हाउस में खीरा-ककड़ी से लेकर गुलाब के फूल की खेती की जा रही है।

इसके अलावा, दो नर्सरी बना रखी हैं, जिनमें कई तरह के फलों के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। विनोद के अनुसार किसी भी फल के लिए ज्यादा समय तक इंतजार नहीं किया जा सकता। किसी भी समय पॉली हाउस में पौधे लगाकर खेती की जा सकती है। साल भर में दो फसल आसानी से ले सकते हैं।

एक पॉली हाउस में करीब 3 लाख 20 हजार रुपए का खर्च आता है। फलों और सब्जी के उत्पादन की बात करें तो 400 से 500 क्विंटल उत्पादन होता है। खीरा-ककड़ी बाजार में 10 रुपए से लेकर 22 रुपए किलो बिकती है।

नीदरलैंड जाकर समझा एक्सपोर्ट प्लान

किसान खुशालचंद्र पाटीदार अपने पॉली हाउस के गुलाब के फूलों को एक्सपोर्ट प्लान समझने के लिए नीदरलैंड भी जा चुके हैं। इसके अलावा, प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान से उन्नतशील खेती-किसान के रूप में सम्मानित भी हो चुके हैं।

प्रदेश में सबसे पहले ऊंटी लहसुन की खेती हमने शुरू की थी। इसके लिए सम्मानित भी हो चुके हैं। इसके अलावा पांचों ने 11 मार्च 2023 को 3 जिलों की विभिन्न समाज की 15 जरूरतमंद बेटियों की शादी भी की थी। पूरी शादी का खर्च इसी परिवार ने उठाया था। किसान गोष्ठियों में भी खुशालचंद्र पाटीदार पारंपरिक खेती से अलग हटकर तकनीकी खेती के उत्पादन के तरीके भी बताते हैं।

एक किलो पर 15 से 20 रुपए तक मुनाफा

किसान खुशालचंद्र पाटीदार बताते हैं कि पॉली हाउस की शुरुआत 2013 से की। बड़े भैया बालमुकुंद कलेक्टर के यहां मीटिंग में गए थे। तब रतलाम जिले में 1 हजार मीटर के 5-5 पॉली किसानों को प्राप्त हुए, तब हमने भी लगाया। उससे सक्सेस होते गए। आज 25 एकड़ में पॉली हाउस है। 2013-14 से बागवानी में आए। कटा हुआ जामफल आया तो लगा इसमें भविष्य अच्छा है। फिर अमरूद के पौधे लगाए।

सीताफल के पौधों की जानकारी मिली। वह भी लगाए। फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। बागवानी में फसल एक बार आती है, लेकिन अच्छा मुनाफा देकर जाती है। शुरुआत में पौधा लगाने से लेकर मार्केट तक फल जाने में एक सीजन में 20 से 25 रुपए किलो का खर्चा आता है। मार्केट में 30 से 40 रुपए किलो बिकता है। 15 से 20 रुपए का फायदा मिलता है। कुल 300 बीघा जमीन में करीब 80 से 90 लाख रुपए तक इनकम हो जाती है।

25 एकड़ में पॉली हाउस में खेती

विनोद का कहना है कि 25 एकड़ में पॉली हाउस में खेती करते हैं। बड़े भैया बालमुकुंद प्लान लाकर देते रहते हैं। बोलते हैं, कुछ ना कुछ खेती में करते रहना चाहिए। बस उन्हीं के निर्देश पर हम सब भाई मिलकर लग जाते हैं। सभी की अलग-अलग जिम्मेदारी रहती हैं।

तीन महीने बाद आता है गुलाब

विनोद पाटीदार कहते हैं कि पॉली हाउस में अभी डच गुलाब और खीरा-ककड़ी की खेती की जा रही है। जिस दिन से डच गुलाब का पौधा लगा है। उस दिन से तीन माह बाद हार्वेस्टिंग चालू हो जाती है। एक एकड़ में 34 हजार पौधे लगते हैं।

खीरा-ककड़ी 5 महीने की फसल है। यह एक कैश फसल की तरह है। पौधे लगाने के 40 दिन दिन में हार्वेस्टिंग शुरू हो जाती है। पांच माह में 3 लाख 20 हजार रुपए का खर्च आता है। रेट 10 से 15 और कभी 20 रुपए तक पहुंच जाता है। खीरा-ककड़ी में साल भर में अच्छी आमदनी हो जाती है। खीरा-ककड़ी दिल्ली तक जाती है। :

पॉली हाउस के पानी के लिए तालाब भी बना रखा है। उसी में पानी स्टोर करके रखते हैं। जैविक खाद का ज्यादा प्रयोग करते हैं। अभी पॉली हाउस में 20 से 22 प्रकार के फलों के पौधे तैयार कर रहे हैं। हमलोगों ने ड्रिप सिंचाई का अलग से पूरा प्लांट सिस्टम तैयार किया है।

खुले और पॉली हाउस की खीरा – ककड़ी में अंतर

दोनों के स्वाद में अंतर आता है। खुले वातावरण की खीरा- ककड़ी कड़क होती है, जबकि पॉली हाउस की खाने में सॉफ्ट रहती है। खुले में औसत एक एकड़ में उत्पादन 200 क्विंटल होता है, जबकि पॉली हाउस में 450 से 500 क्विंटल का उत्पादन होता है। रेट में 10 रुपए से ज्यादा का अंतर आता है।