शकरकंदी को भारत में लोग बड़े चाव से खाते है। शकरकंदी फसल मुख्य रूप से अपने मीठे स्वाद और स्टार्ची जड़ों के लिए उगाई जाती है।
भारत में इसकी खेती लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है। इस लेख में आप शकरकंदी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में विस्तार से जानेंगे।
शकरकंद के में पाए जाने वाले पोषक तत्व
- शकरकंद बीटा कैरोटीन का एक बहुत अच्छा स्त्रोत है, इसलिए इसे एंटीऑक्सीडेंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- शकरकंद को उबालकर और भून कर खाया जाता है। कई स्थानों पर शकरकंद की सब्जी भी बनाई जाती है।
- आलू की तुलना में शकरकंद में मिठास और स्टार्च अधिक पाया जाता है। इसके सेवन से चहरे पर चमक आती है और बालों में भी वृद्धि होती है।
- यह जड़ी-बूटी वाली सदाबहार बेल है, जिसके पत्ते हिस्सो में बंटे हुए या दिल के आकार के होते हैं।
- शकरकंद की खेती के लिए मिट्टी और भूमि की तैयारी
- वैसे तो इसकी खेती बहुत तरह की मिट्टी में की जा सकती है, जैसे दोमट मिट्टी, लेकिन यह अधिक उपजाऊ और अच्छे निकास वाली मिट्टी में बेहतर पैदावार देता है।
- ध्यान रखे की इसकी हल्की रेतली और भारी चिकनी मिट्टी में खेती नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसमें गांठों का विकास नहीं होता है।
- खेती से अछि पैदावर प्राप्त करने के लिए pH मिट्टी का 5.8 से 6.7 होना चाहिए।
- इसकी खेती करने के लिए खेती की 2-3 बार अच्छे से जुताई करे ताकि खेत की मिट्टी नरम, भुरभुरी और समतल हो जाए।
- इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी सबसे मत्वपूर्ण होती है, जुताई के बाद खेत में अच्छे से क्यारिया बना लेनी चाहिए शकरकंद की बुवाई क्यारियों में की जाती है।
- खेत को अच्छी तरह जुताई कर लें, मिट्टी की गहराई कम से कम 30 सेमी होनी चाहिए।
- 60 सेमी की दूरी पर मेड़ें और खाँचे बनाएँ।
- शकरकंद को क्यारियों में भी उगाया जा सकता है.
- शकरकंदी की बुवाई और रोपाई कैसे करते है?
- रोपण के लिए कटिंग 2-3 गांठों वाली 10-15 सेमी लंबी होनी चाहिए और 3 महीने और उससे अधिक उम्र की परिपक्व बेलों से एकत्र की जानी चाहिए।
- बेल की कलमों को 400 ग्राम एज़ोस्पायरिलम को पर्याप्त मात्रा में पानी में मिलाकर घोल में डुबोएं।
- मेड़ पर रोपाई के दौरान प्रत्येक कटिंग के बीच लगभग एक फुट की दुरी रखनी चाहिए।
- कटिंग को भूमि में 20 सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए।
- इस विधि में रोपाई के बाद पौधों के विकास के दौरान बार बार मिट्टी चढ़ाने के लिए अधिक महंत नहीं करनी पड़ती है।
- एक एकड़ की खेती के लिए 250 से 350 किलो बेल की आवश्यकता होती है।
- शकरकंदी की उन्नत किस्में
अच्छी उपज लेने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव बहुत आवशयक है, शकरकंदी की उन्नत किस्में निम्नलिखित है – Co 3, Co CIP 1, श्री नंदिनी , श्री वर्धिनी, किरण, श्री भद्रा, श्री रत्ना,वर्षा, गौरी और संकर जैसी किस्मों को उगाकर आप अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है।
शकरकंदी में सिंचाई प्रबंधन
- बिजाई के बाद, पहले 10 दिन हर 2 हफ्ते में एक बार सिंचाई करें और फिर 7-10 दिनों में एक बार सिंचाई करें। पुटाई से 3 हफ्ते पहले सिंचाई करना बंद कर दें| पर पुटाई से 2 दिन पहले एक सिंचाई जरूरी होती है।
- शकरकंदी की फसल की कटाई
120 दिनों में शकरकंदी की फसल पककर तैयार हो जाती है। फल पकने और पीले होने पर इसकी पुटाई की जाती है। फल उखाड़ कर इसकी पुटाई की जाती है। 100 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन औसत है। ताजा उखाड़ा हुआ फल मंडीकरण के लिए तैयार है।