भाजपा की अगुवाई वाली NDA सरकार के लिए भूमि एवं श्रम जैसे विवादास्पद सुधार मंजूर कराना ज्यादा चुनौती भरा होगा

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लोक सभा चुनावों में किसी भी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद आज फिच और मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसियों ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली नई गठबंधन सरकार के लिए भूमि एवं श्रम जैसे प्रमुख किंतु विवादास्पद सुधार मंजूर कराना चुनौती भरा रह सकता है। मगर एजेंसियों ने कहा कि मोटे तौर पर नीतियां जारी रहने के आसार हैं।

भारत में फिच रेटिंग्स के निदेशक एवं प्राइमरी सॉवरिन एनालिस्ट जेरेमी जूक (Jeremy Zook) ने एक नोट में कहा कि बहुमत कमजोर रहने से सुधार का एजेंडा बढ़ाने में चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। अगले कुछ वर्षों में दमदार वृद्धि की संभावना बनी हुई है मगर वह काफी हद तक सरकार के पूंजीगत व्यय (capex) और कंपनियों एवं बैंकों के बहीखाते की मजबूती पर निर्भर करती है।

जूक ने कहा, ‘भाजपा पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई और अब उसे गठबंधन सहयोगियों के सहारे रहना होगा। ऐसे में भूमि एवं श्रम जैसे विवादास्पद सुधार मंजूर कराना उसके लिए ज्यादा चुनौती भरा होगा, जिन्हें पार्टी ने विनिर्माण में देश की प्रतिस्पर्द्धी क्षमता बढ़ाने के लिहाज से अपनी प्राथमिकता बताया है। सुधार आगे बढ़ाने में दिक्कत आई तो अगले कुछ साल में वृद्धि की संभावना पर असर पड़ सकता है।’

मूडीज रेटिंग्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष क्रिस्टियन डी गजमैन (Senior vice president of Moody’s Ratings Christian de Guzman) ने भी कुछ ऐसा ही कहा। उन्होंने कहा कि नीतियां पहले जैसे चलती रहेंगी और आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने के लिए बुनियादी ढांचे पर खर्च तथा देसी विनिर्माण को बढ़ावा देने के वास्ते बजट में इंतजाम ऐसे ही चलता रहेग।

गजमैन ने एक नोट में कहा, ‘राजग की जीत का अंतर कम रहने और संसद में भाजपा का पूर्ण बहुमत खत्म हो जाने से दूरगामी आर्थिक एवं राजकोषीय सुधार अटक सकते हैं। इससे खजाने की मजबूती पर प्रगति भी रुक सकती है। राजकोषीय घाटे आदि के मामले में भारत बीएए- रेटिंग वाले दूसरे देशों से कमजो रहेगा।’

मूडीज रेटिंग्स ने आगे कहा कि हाल-फिलहाल की आर्थिक रफ्तार व्यवस्था में मौजूद उन कमजोरियों को छिपा रही है, जो लंबे अरसे में वृद्धि की संभावनाओं कम कर देती हैं। सभी क्षेत्रों में युवाओं के बीच भारी बेरोजगारी और कृषि उत्पादकता में कमी जैसे पहलू अर्थव्यवस्था की दौड़ के आड़े आ रहे हैं। ‘

HSBC की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) प्रांजुल भंडारी को लगता है कि बुनियादी ढांचे में पूंजीगत खर्च पर जोर, खाद्य आपूर्ति प्रबंधन बेहतर करने, मुद्रास्फीति को 4 फीसदी पर रखने और छोटी कंपनियों को कर्ज आसानी से मुहैया कराने जैसे ‘आसान’ सुधार जारी रहेंगे। इन सुधारों के बल पर 6.5 फीसदी की वृद्धि हासिल हो सकती है।

उन्होंने कहा, ‘इनमें से अधिकातर सुधार कार्यपालिका यानी प्रशासन के जरिये होते हैं। इसीलिए विधायी प्रक्रिया धीमी होने का भी इन पर फौरन कोई असर शायद ही पड़े।

लेकिन वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था में सुधार, भूमि, श्रम, कृषि, न्यायपालिका और अफसरशाही जैसे सुधारों के लिए संसद में जाना पड़ता है। इसलिए इन सुधारों पर आगे बढ़ना सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

सिटीग्रुप (CitiGroup) के मुख्य अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती ने कहा कि सरकार के खजाने में काफी गुंजाइश है। इसका इस्तेमाल गरीबों, महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए नए खर्च में किया जा सकता है। लेकिन सरकार पूंजीगत व्यय पर जोर देती रहेगी।