दलहन फसल मसूर, प्रोटीन और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों का स्रोत है। कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि उकठा रोग शुरूआत में खेत के छोटे-छोटे हिस्सों में पूरे खेत में फैल जाते हैं। इसका प्रकोप से नवजात पौधों की पत्तियां सूखने लगती हैं और पौधे मुरझाकर नीचे झुक जाते हैं। रोगग्रस्त पौधों शाखायें कम हो जाती हैं। मसूर की फसल में सबसे विनाशकारी मृदाजनित रोग फ्यूजेरियम उकठा है। यह रोग किसानों के खेतों में उपज का 50-55 प्रतिशत तक नुकसान होता है। यह रोग 23-26 डिग्री सेल्सियस तापमान पर मसूर के अंकुरण एवं वानस्पतिक को प्रभावित करता है। रोग प्रतिरोधी या आंशिक प्रतिरोधी किस्मों, बुवाई के समय का समायोजन, जैव-नियंत्रण और रासायनिक बीज उपचार के द्वारा इस रोग के नुकसान को कम किया जा सकता है।
उकठा रोग के लक्षण:
मसूर की फसल के वयस्क पौधों में यह रोग अधिकर फूल आने के समय या फलियों में दाने बनने के समय दिखाई देते हैं। रोगग्रस्त पौधे की पत्तियां मुरझाकर झुकने लगती हैं। पौधे में पीलापन अधिक होने लगता है तथा अंत में पूरी तरह पौधा उकठा रोग से ग्रसित हो जाता है और रोगग्रस्त पौधे की शाखायें कम होती हैं। यह रोग पौधे की फली बनने की अवस्था को अधिक प्रभावित करता है। रोगग्रस्त पौधे की फलियों के दाने अपना पूरा आकार प्राप्त नहीं कर पाते हैं और अक्सर सिकुड़ जाते हैं। इससे उपज में भी भारी कमा आती है।
फसल को कैसे प्रभावित करता है उकठा रोग: फसल की कटाई के बाद रोगग्रस्त पौधों की जड़ें या ठूंठ आदि भूमि में ही रह जाते हैं, जिन पर कवक, बीजाणु के रूप में पनपते रहते हैं। यह रोगजनक मृदा में क्लैमाइडोस्पोर के रूप में कई वर्षों तक जीवित रहकर मसूर में रोग उत्पन्न करता रहता है। मसूर, मानव जीवन का आवश्यक एवं मूल्यवान पौष्टिक आहार है, जिसे ज्यादातर दाल के रूप उपयोग किया जाता है।
उकठा रोग से बचाव: उकठा रोग की उग्रता को कम करने के लिये थायरम 3 ग्राम या 1.5 ग्राम थायरम / 1.5 ग्राम कार्बान्डाइजम का मिश्रण प्रति किलों बीज को उपचारित करके बोयें। उकठा निरोधक जाति जैसे जे.एल.-3 आदि की अच्छी किस्मों की बुवाई करें। इस रोग से बचाव के लिए मृदा में जैविक नाइट्रोजन का स्थिरीकरण और कार्बन पृथक्करण के द्वारा मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होता है। किसान मसूर की फसल में लगने वाले इस विनाशकारी रोग के लक्षणों को पहचानकर समय पर उसका निदान करते रहें।