ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत 80 लाख टन से अधिक सस्ता गेहूं मिलर्स और सहकारी एजेंसियों को बेचने के बावजूद गेहूं के थोक, मंडी और रिटेल प्राइस में पिछले साल के मुकाबले इजाफा हो चुका है. सवाल यह है कि आखिर वो कौन सी नीति है जिसकी वजह से किसान और उपभोक्ता दोनों परेशान हैं?
गेहूं के साथ क्या खेल हो रहा है. गेहूं उगाने वाले किसान और उपभोक्ता दोनों क्या किसी साजिश का शिकार हो रहे हैं. देश के आम उपभोक्ताओं और किसानों को आखिर क्यों गेहूं के मोर्चे पर अपनी जेब क्यों कटवानी पड़ रही हैं. मसलन, देश की आबादी की थाली में रोटी की कीमत आखिर क्यों बढ़ गई है. वह भी तब, जब केंद्र सरकार ने सस्ते आटे के लिए ओपन मार्केट सेल स्कीम यानी ओएमएसएस के तहत सस्ता गेहूं इंडस्ट्री को उपलब्ध करवाया, तो वहीं दूसरी तरफ इस वजह से गेहूं किसानों की उनकी उपज के अपेक्षाकृत कम दाम मिले. किसानों को नुकसान उठाना पड़ा. इसके बावजूद गेहूं के दाम बाजार में बढ़े हुए हैं, जिससे आम आदमी के लिए रोटी की कीमत महंगी हो गई है.
गेहूं की बंपर पैदावार के बीच इसका दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम नहीं हो रहा है. यह किसानों के लिए अच्छी बात है लेकिन उपभोक्ताओं के लिए नहीं. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल के मार्च के मुकाबले इस साल यानी मार्च 2024 में गेहूं का दाम काफी बढ़ चुका है. इसके थोक दाम में 4.58 फीसदी, मंडी भाव में 8.76 और रिटेल प्राइस में 4.97 फीसदी का इजाफा हुआ है. यानी सरकार खुद मानती है कि गेहूं पिछले साल से महंगा हो गया है. गेहूं के दाम का यह हाल तब है जब महंगाई कम करने के नाम पर बहुत रियायती दाम पर 8 फरवरी तक सरकार OMSS के तहत 80.04 लाख मीट्रिक टन गेहूं निजी और सहकारी क्षेत्र को बेच चुकी है.
किसे मिला सस्ता गेहूं
जब ओपन मार्केट में 3000 रुपये का रेट था तब ओएमएसएस के तहत सिर्फ 2150 रुपये प्रति क्विंटल के रियायती दर पर गेहूं बेचा गया. यहां इस बात का जरूर ध्यान रखिएगा कि ओएमएसएस के तहत आम उपभोक्ताओं को सस्ता गेहूं नहीं मिलता है. बल्कि महंगाई कम करने का पर्चा फाड़कर सस्ता गेहूं बड़े रोलर फ्लोर मिलर्स और कुछ सरकारी एजेंसियों को दिया जाता है. इस बीच चिंता बढ़ाने वाली बात यह है कि 2017 के बाद मार्च 2024 में सरकार के पास गेहूं का सबसे कम स्टॉक है. अब सरकार के सामने ज्यादा गेहूं खरीदने की चुनौती है. पिछले दो साल से सरकार एमएसपी पर गेहूं खरीद का लक्ष्य नहीं हासिल कर पा रही है
कौन बढ़ा रहा है महंगाई
टैक्सपेयर्स के पैसे से सरकार बफर स्टॉक के लिए गेहूं खरीदती है. सरकार के लिए गेहूं की इकोनॉमिक कॉस्ट लगभग 30 रुपये प्रति किलो आती है. इतने रुपये खर्च करने के बाद 2150 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर उसे महंगाई कम करने के नाम पर मिलर्स को दे दिया गया. लेकिन नतीजा क्या हुआ वो खुद कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट बता रही है. यही नहीं गेहूं का एक्सपोर्ट भी 13 मई 2022 से ही भी बंद है. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद गेहूं की महंगाई को बढ़ा कौन रहा है?
गेहूं-आटा का थोक दाम बढ़ा
केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मार्च 2024 तक, गेहूं का मासिक अखिल भारतीय औसत थोक मूल्य 2987.42 रुपये प्रति क्विंटल था, जो पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 4.82 फीसदी अधिक है. मार्च 2024 तक, गेहूं आटे का मासिक अखिल भारतीय औसत थोक मूल्य 3393.14 रुपये प्रति क्विंटल था, जो पिछले साल के इसी महीने की कीमत की तुलना में 4.58 फीसदी अधिक है.
मंडी और रिटेल भाव
मार्च 2024 के लिए गेहूं का थोक मंडी मूल्य 2408.47 रुपये प्रति क्विंटल रहा जो पिछले साल मार्च 2023 की तुलना में 8.76 फीसदी अधिक है. ये कीमतें एमएसपी 2125 रुपये प्रति क्विंटल से 13.34 फीसदी ज्यादा रही हैं. इसी तरह मार्च 2024 तक, गेहूं का मासिक औसत खुदरा मूल्य 3369.39 रुपये प्रति क्विंटल रहा, जो पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 4.61 फीसदी ज्यादा है. मार्च 2024 तक, गेहूं आटे की मासिक औसत खुदरा कीमत 3891.03 रुपये प्रति क्विंटल थी जो पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 4.97 फीसदी अधिक है.
किसे मिलेगी राहत
फिलहाल, अब देखना यह है कि गेहूं की बंपर पैदावार की उम्मीदों के बीच क्या सरकार इस साल पर्याप्त खरीद कर पाएगी. क्या एक्सपोर्ट खुलेगा और क्या किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को राहत मिलेगी या फिर व्यापारियों को ही गेहूं के गणित का पूरा फायदा मिलेगा. इस साल सरकार ने 11.4 करोड़ टन से लेकर 11.5 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है.