मूंग की खेती :बिहार राज्य कृषि विभाग द्वारा किए गए बीज वितरण

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भारत में किसानों द्वारा उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मूंग महत्वपूर्ण स्थान रखती है. इसमें 24% प्रोटीन होने के साथ-साथ रेशे और आयरन की भी काफी अच्छी मात्रा पाई जाती है, जिससे बाजारों में इनकी हमेशा ही अच्छी मांग रहती है. ऐसे में किसान मूंग की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते है. कृषि विभाग द्वारा बिहार राज्य में गरमा मौसम में मूँग की खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है. संजय कुमार अग्रवाल (सचिव, कृषि विभाग, बिहार) ने इस बात की जानकारी दी है.

मूंग के बीज का वितरण

उन्होंने बताया कि, बिहार में 80 प्रतिशत से ज्यादा मूंग की खेती गरमा मौसम में की जाती है. बिहार राज्य बीज निगम के माध्यम से राज्य के 4,06,107 किसानों के बीच 33,307 क्विंटल मूंग के बीज का अनुदानित दर पर वितरण किया गया है.

मिट्टी की उर्वरा-शक्ति बढ़ाती है मूंग

संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि, गरमा मूंग की खेती न केवल धान-गेहूं फसल चक्र में तीसरे फसल के रूप में फसल सघनता को बढ़ाती है, बल्कि फसलों के उत्पादन, उत्पादकता और मिट्टी की उर्वरा-शक्ति में भी वृद्धि लाती है. मूंग की फसल अपने वृद्धि काल में सबसे ज्यादा गरमी सहन कर सकती है और किसान इसकी खेती करके कम लागत में अधिक लाभ कमा सकते हैं. उन्होंने बताया कि, गरमा मौसम में मूंग की खेती करने के किसानों को दो फायदे हो सकते हैं. पहला किसान मूंग के फली की एक तोड़ाई कर उपज प्राप्त कर सकते हैं और दूसरा फली तोड़ाई के उपरान्त इसके पौधे को मिट्टी में मिलाकर बड़ी मात्रा में हरी खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं.

जीरो टिलेज तकनीक से मूंग की खेती का प्रत्यक्षण

अग्रवाल ने बताया कि, बिहार राज्य में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत् अल्पावधि (60-70 दिनों) के मूंग के प्रभेदों को बढ़ावा दिया जा रहा है. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम में फसल अवशेष का प्रबंधन करते हुए जीरो टिलेज तकनीक से मूंग के खेती का प्रत्यक्षण प्रत्येक जिला में 05-05 चयनित गांवों अर्थात कुल 180 गांवों में किया जा रहा है.

इस कार्यक्रम के अंतर्गत चयनित गांवों में 8,030 एकड़ क्षेत्र में जीरो टिलेज तकनीक से मूंग की खेती का प्रत्यक्षण किया गया है. आत्मा योजना तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से राज्य के किसानों को मूंग की खेती का प्रत्यक्षण और परिभ्रमण कराया जा रहा है, जिससे किसानों में इसके तकनीक के हस्तांतरण हो रहा है.

लेखक
संजय कुमार अग्रवाल
(सचिव, कृषि विभाग, बिहार)