भीषण गर्मी के चलते पशुओं का हाल से बेहाल है. ऊपर से लू का असर अलग से. इसके चलते पशुओं का खानपान तो कम होता ही है, साथ में उत्पादन घटने से पशुपालक को भी हर रोज नुकसान उठाना पड़ता है. एनिमल एक्स,पर्ट की मानें तो इस सब को इलाज नहीं सिर्फ उपाय है. और अगर ऐसे में बीमारियों का खतरा मंडराने लगे तो मुसीबत डबल हो जाती है. हाल ही में निवेदी संस्थान ने तीन राज्योंम के लिए एंथ्रेक्स बीमारी का अलर्ट जारी किया है. ये अलर्ट 27 शहरों के लिए जारी किया गया है.
अलर्ट के मुताबिक सभी शहर वैरी हाई रिस्के पर हैं. एक्सपर्ट की मानें तो इस अलर्ट के चलते तीनों राज्यों में पलने वाली भेड़-बकरियों पर खतरा है. क्यों कि एंथ्रेक्स बीमारी भेड़-बकरियों पर ही अटैक करती है. इस बीमारी का इलाज एक खास इंजेक्शन है और बचाव के लिए तय वक्त पर टीका लगवाया जा सकता है.
इन शहरों में हो सकता है एंथ्रेक्स का अटैक
निवेदी संस्था की ओर से जारी की गई अलर्ट रिपोर्ट पर जाएं तो जून में एंथ्रेक्स बीमारी अपना असर दिखा सकती है. एंथ्रेक्स का असर देश के 11 राज्यों में हो सकता है. इन 11 राज्यों के खास 27 शहरों के बारे में अलर्ट दिया गया है. जिसमे तमिलनाडु के तिरुवल्लुर, तिरुवन्नामलाई, विलुप्पुरम में ज्यादा खतरा है. जबकि वेल्लोर हाई रिक्स पर है. वहीं आंध्र प्रदेश का चित्तूर, वाईएसआर, श्री पोट्टी श्रीरामुलु और श्रीकाकुलम भी हाई रिस्क पर है. कर्नाटक के बेल्लारी, चामराजनगर, कोप्पल, रायचुर, तुमकुर और चिक्कबल्लपुर हाई रिस्क पर है. केरल के त्रिशुर और इडुक्की हैं. मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स, वेस्ट गारो हिल्स , रिबुई, वेस्टय जंयतिया हिल्स शामिल हैं.
ऐसे करें एंथ्रेक्स की पहचान और उपाय
जानकार बताते हैं कि अलग-अलग राज्यों और शहरों में एंथ्रेक्स बीमारी को स्थानीय भाषा में दूसरे ही नामों से जाना जाता है. जैसे इस बीमारी को भेड़ पालक रक्तांजली रोग के नाम से जानते हैं. यह रोग जीवाणु द्वारा होता है. भेड़ों के मुकाबले ये बीमारी बकरियों में ज्यादा होती है. वहीं गददी भेड़ पालक इसे गंणडयाली नाम की बीमारी से जानते हैं. एंथ्रेक्स से पीड़ित होने पर भेड़-बकरियों में बहुत तेज़ बुखार आता है, भेड़-बकरी के नाक, कान, मुंह और गुदा से खून आने लगता है. एंथ्रेक्स छूआछूत और संक्रमण से होने वाली बीमारी है. पशु चिकित्सकों का कहना है कि यह एक एपीडेमिक बीमारी है, जो एक बार जिस स्थान पर फैलती है वहीं उसी स्थान पर बार-बार फैलती रहती है. इसे गिल्टी रोग, जहरी बुखार या पिलबढ़वा के नाम से भी जाना जाता है.
जानकारों का कहना है कि इस रोग से मरे भेड़-बकरियों की खाल नहीं निकालनी चाहिए. मरे जानवर को गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए. चरागाह को भी बदल देना चाहिए. बीमार भेड़-बकरियों को एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन चार-पांच दिन पशु चिकित्सक की सलाह पर लगवाने चाहिए. इस बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण करवाया जा सकता है.