कृषि विशेषज्ञ शिव शंकर वर्मा ने कहा कि धान की पारंपरिक तरीके से खेती करने पर अत्यधिक श्रम पानी के साथ ही अत्यधिक लागत आती है. इसीलिए डीएसआर विधि से खेती करके किसान कम लागत कम पानी में अत्यधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.
खरीफ की फसल का सीजन चल रहा है. इस सीजन में धान की फसल को खरीफ की मुख्य फसलों में से एक माना जाता है. धान की खेती करने वाले किसानों ने फसल रोपाई के लिए तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए किसान सबसे पहले धान की नर्सरी करते हैं. उसके बाद खेतों में पौधे की रोपाई की जाती है .इस कार्य में किसानों को मेहनत के साथ ही अधिक लागत आती है.
धान की रोपाई करने के लिए मजदूरों के साथ ही खेत में अधिक पानी की जरूरत पड़ती है. जिसकी वजह से सूखा प्रभावित क्षेत्र के किसानों को धान की फसल तैयार करने के लिए काफी मेहनत व खर्चा करना पड़ता है.तब जाकर कहीं फसल तैयार होती है. लेकिन अब किसानों को श्रम व लागत की चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम उन्हें धान की खेती करने के लिए एक खास विधि के बारे में बताने जा रहे हैं.
कम पानी में कर सकते है पैदावार
इस विधि से खेती करके वह कम मेहनत वह कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. रायबरेली के कृषि विशेषज्ञ शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि धान की पारंपरिक तरीके से खेती करने पर अत्यधिक श्रम पानी के साथ ही अत्यधिक लागत आती है. इसीलिए डीएसआर विधि से खेती करके किसान कम लागत कम पानी में अत्यधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.
डीएसआर विधि
क्या है डीएसआर विधि : वह बताते हैं कि डीएसआर तकनीकी यानी की बीज की खेत में सीधी बुवाई करना होता है. इस तकनीकी में कम लागत के साथ ही अत्यधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इसके साथ ही या तकनीकी पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी कारगर होती है. यह फसल पर खरपतवार पर नियंत्रण में भी आसान बनाती है. इस तकनीकी से अत्यधिक उपज पाने के लिए किसानों को ध्यान देना होगा. आपके पास सिंचाई के संसाधन उपलब्ध हो तो हल्की बनावट वाली बलुई दोमट मिट्टी में 100 से 135 दिन वाली प्रजातियों का चयन करें. जबकि, भारी बनावट वाली मिट्टी के लिए 135 से 165 दिन वाली माध्यम से देर तक पकने वाली किस्म का चयन करना चाहिए.
मानसून की बारिश से पहले करे बुवाई
वहीं इसकी बुवाई के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि मानसून की बारिश से लगभग 10 से 15 दिन पहले यानी कि मई माह के अंतिम सप्ताह और अगेती फसल के लिए जून के प्रथम सप्ताह में इसकी बुवाई का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है.
धान को पानी में भिगाकर कर सकते है बुवाई
दो तरह से होती है डीएसआर तकनीकी से बुवाई : Local 18 से बात करते हुए प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि डीएसआर तकनीकी से किसान दो तरह से बुवाई कर सकते हैं .पहला सूखे धान की बुवाई करके एवं दूसरा धान को पानी में भिगोकर भी सीधे बुवाई कर सकते हैं. सीधे बुवाई की गई धान की फसल रोपाई की गई फसल से लगभग 15 दिन पहले पक कर तैयार हो जाती है. जिससे आगे की फसल के लिए उपयुक्त समय मिल जाता है. इस तकनीकी में पर्यावरण पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है. क्योंकि डीएसआर में मीथेन उत्सर्जन को 6 से 92 प्रतिशत तक कम किया जाता है. जो पर्यावरण के लिए अनुकूल होता है.