ड्रैगन फ्रूट की व्यावसायिक खेती

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ड्रैगन फ्रूट को भारत में पितहाया या कमलम के नाम से भी जाना जाता है. यह फल कैकटेसी परिवार का बेलनुमा पौधा होता है. ड्रैगन फ्रूट थाईलैंड, वियतनाम, इजराइल और श्रीलंका में मुख्य रूप से पाया जाता  है. भारत में भी इस फल की व्यावसायिक खेती जोर पकड़ रही है. बिहार राज्य के कई जिले के किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती कर के अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. बिहार में ड्रैगन फ्रूट प्रमुख रूप से किशनगंज जिले में उगाया जा रहा है. इस फल का बाजार मूल्य 200 से 250 रुपये/किग्रा है. इस फल की खेती उन क्षेत्रों में उत्कृष्ट है जहां वर्षा की संभावना कम होती है. इस फल के पौधे को सजावटी पौधे के साथ-साथ फल पैदा करने वाले पौधे के रूप में भी माना जाता है. 

 

ड्रैगन फ्रूट का सेवन ताजे फल के रूप में किए जाने के अतिरिक्त इसका उपयोग जैम, आइसक्रीम, जेली उत्पादन, फलों के रस और वाइन में किया जा सकता है. इस फल का उपयोग फेस पैक बनाने में भी किया जाता है. ड्रैगन फ्रूट में प्रोटीन, फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और विटामिन्स की मात्रा भरपूर होती है. ड्रैगन फ्रूट में पॉलीफेनोल्स, कैरोटीनॉयड और बीटासायनिन जैसे प्लांट कंपाउंड होते हैं. इस फल में एंटीऑक्सीडेंट विटामिन सी, बीटा-कैरोटीन, लाइकोपीन और बीटालेन होते हैं, जो मानव स्वास्थ के लिए अत्यधिक उपयोगी माना जाता है.

मृदा एवं उपयुक्त जलवायु

यद्यपि ड्रैगन फ्रूट कई प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, परन्तु दोमट, अच्छे जल निकास वाली एवं पोषण तत्वों से भरपूर मिट्टी इस फल की खेती के लिए उपयुक्त होती है. बहुत ज्यादा रेतीली एवं खराब जल निकास वाली मिट्टी में  ड्रैगन फ्रूट  की खेती से परहेज करें .1145-2540 मि.मी औसत वर्षा के साथ 20-30 डिग्री सेल्सीयस तापमान इसकी वृद्धि विकास एवं उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है.

ड्रैगन फ्रूट उष्णकटिबंधीयक्षेत्रों में उगाया जाने वाला फल है, परन्तु इसे उपोष्ण कटिबंधीय (Sub-Tropical) क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है. यह फल कठोर मौसमी परिस्थितियों के प्रति काफी सहनशील होता है. इस फसल को भरपूर प्रकाश की आवश्यकता होती है किन्तु मई-जून के अधिक गर्मी वाले महीनों तथा सर्दियों में कोहरे से भी कुछ शाखाओं को नुकसान हो सकता है.

ड्रैगन फ्रूट की उन्नत किस्में

ड्रैगन फ्रूट की तीन प्रमुख किस्में हैं-

  • हिलोसेरस पोलीराईजस या हिलोसेरस कोस्टारीसेन्सीस (रोजा)- लाल रंग के आवरण के साथ लाल गूदा एवं काले रंग के महीन बीज होते है.
  • हिलोसेरस अनडैटस (बलन्का)- गुलाबी रंग के आवरण के साथ सफेद गूदा एवं काले रंग के महीन बीज होते हैं.
  • हिलोसेरस मेगालेन्थस या सेलेनीसिरस मेगालेन्थस (अमरीला)- पीले रंग के आवरण के साथ सफेद गूदा एवं काले रंगी के महीन बीज होते है.

ड्रैगन फ्रूट का नर्सरी उत्पादन

ड्रैगन फ्रूट की नर्सरी आमतौर पर कलमों से तैयार की जाती है. कलमों की लंबाई 20-25 सेंटीमीटर होनी चाहिए तथा कलमों को बुआई से 1-2 दिन पहले तैयार किया जाना चाहिए तथा काटे गए स्थान से निकलने वाले लेसदार पदार्थ को सूखने देना चाहिए. कलमें फल की तुड़ाई के बाद बनानी चाहिए तथा नये अंकुरित कलमें नहीं लगानी चाहिए. इन कलमों को 10 x 15 सेंटीमीटर आकार के पॉलीथीन के लिफाफों में मिट्टी, गोबर की गली- सड़ी  खाद तथा रेत के 1:1:1 अनुपात वाले मिश्रण में लगाया जाता है. पौधे लगभग 2-3 महीनों में तैयार हो जाते हैं . बीज से भी पौधा तैयार किया जाता है परन्तु इसको तैयार करने में अधिक समय लगता है. तथा प्रभेद की सत्यता पर भी संदेह बना रहता है.

ड्रैगन फ्रूट की खेत की तैयारी एवं चुनाव

जल जमाव एवं खरपतवार से मुक्त तथा 2-3 बार गहरी जुताई कर 300-350 क्विंटल/हे० एफ० वाई०एम० या सड़ी गोबर की खाद अच्छे से मिलाते हुए अन्तिम जुताई में पाटा लगा दें.

ड्रैगन फ्रूट के पौध लगाने की विधि

जब कलम किया हुआ पौधा 30-40 दिन का हो जाये और नई शाखांए आने लगे तो रोपण स्थली पर एक पिलर से  दूसरे पिलर की दूरी 2.5-3.0 मीटर रखते हुए एक पिलर पर 4 पौधा रोपण किया जाता है इन चिन्हित दूरियों पर 60X60X60 सें.मी. लम्बाई, चौड़ाई, गहराई खोदकर उसमें एक मिश्रण तैयार करें जो मिट्टी, बालू एवं सड़ी गोबर की खाद 1:1:2 के अनुपात में मिलाकर गढ्‌डे को भर दें. जड़ों और पौधों की विकास हेतु 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का भी प्रति गढ्‌डा डाले साथ हीं पौधों को सहारा हेतु कंक्रीट या लकड़ी के पिलर या पोल जिसकी उचाई सतह से 5-7 फीट रखी जाती है और उपरी सिरा पर 30-40 सें.मी. की गोलाई में एक आकृति देते है जिसमें टायर अथवा कंक्रीट के बने रिंग को स्थापित किया जाता है. जिसके माध्यम से पौधों की शाखाएं गोले के अंदर से नीचे की तरफ झुकी हुई होती है जिससे पौधों की देखभाल एवं फलों की तुड़ाई में आसानी होती है. ड्रैगन फ्रूट के पौधों की उम्र 20-30 वर्ष तक होती है.

यदि एक एकड़ की बात की जाय तो लगभग 1700-1800 कलम से तैयार पौधों की आवश्यकता पड़ती है. पौधों की संख्या पौधों के लगाने की दूरी एवं विधि इत्यादि पर घट बढ़ सकती है. यह ध्यान देना चाहिए कि एक पिलर के चारो तरफ से लगाने  पर चार पौधों की आवश्यकता होती है.

ड्रैगन फ्रूट में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए कार्बनिक खाद का उपयोग अत्याधिक महत्व रखता है. प्रत्येक वर्ष 15 किलोग्राम एफ.वाई.एम./ 5 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट प्रति पिलर तथा साथ हीं प्रत्येक वर्ष परनिम्न सारणी अनुसार खाद एवं उर्वरक बढाते रहना चाहिए.

पौधे की उम्र (वर्ष)गोबर खाद (किलो खंभा)यूरिया(ग्राम प्रति खंभा)सिंगल सुपर फास्फेट(ग्राम खंभा)मियूरेट ऑफ पोटाश(ग्राम प्रति खंभा)
15154015
210258025
3155012050
4207516075
5 और उपर25100200100

गोबर की खाद जनवरी-फरवरी के महीने में डालें. यूरिया, सिंगल सुपर फॉस्फेट और मियूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग तीन बराबर हिस्सों में (फरवरी, मई और अगस्त के अंत में) किया जाना चाहिए .

सिंचाई एवं कटाई-छंटाई: 

चूंकि ड्रैगन फ्रूट कैकट्स परिवार से संबन्धित है, इसलिए इसे केवल शुष्क महीनों में (अप्रैल से जून) में सिंचित किया जाना चाहिए. इस फसल में जून महीने से फूल आना शुरू हो जाते हैं और सितम्बर के अंत तक जारी रहता है. फलों के विकास के दौरान मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए उचित सिंचाई की जानी चाहिए जिसके लिए टपक सिंचाई प्रणाली उपयुक्त है. क्योंकि इसके फूल और फल बरसात की मौसम में आते हैं. इसलिए ज़मीन में ज्यादा नमी तथा पानी जमा न होने दें. गर्मियों के शुष्क तथा अधिक तापमान वाले महीनों में दोपहर को पानी न दें. आमतौर पर इसके उत्पादन के लिए सिंगल पोल प्रणाली या ट्रैलिस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है. ट्रैलिस प्रणाली में पौधों को तारों तक पहुंचाने के लिए बांस की डंडियों की सहायता लें. पौधों को खंभों के साथ-साथ चढ़ाने के लिए इनको लगातार प्लास्टिक की रस्सियों से बांधते रहें और जब पौधे बढ़कर ऊपर लगे चक्र से बाहर आने लग जाएं तब इनकी कटाई करें ताकि अधिक शाखाएं निकलें. जमीन से लेकर ऊपरी गोल चक्र तक पौधों से निकल रही नवांकुरित टहनियों को काटते रहें.

ड्रैगन फ्रूट में लगने वाले रोग एवं नियंत्रण  

सामान्यतः ड्रैगन फ्रूट में कीट और व्याधियों का प्रकोप कम होता है. फिर भी इसमें कुछ रोग व कीट का प्रकोप देखा गया है. जो निम्नलिखित हैं-

तना गलन रोग

ड्रैगन फ्रूट के उत्पादन में तना गलन सबसे बड़ी समस्या है जो कवक से फैलता है. संक्रमण तना में कीड़ों द्वारा क्षतिग्रस्त किये गए भाग से या एन्थ्रोक्नोज के संक्रमण से शुरू होती है. शुरुआत में तना का पीला पड़ना तना के उतक का मुलायम होना तथा सडन का गंध आना तथा अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में तना सडन के साथ गल जाना प्रमुख लक्षण है.

नियंत्रण

इसके नियंत्रण के लिए आक्रांत शाखायों का कटाई-छटाई करने के उपरांत कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50wp/2.5 ग्राम/प्रति लीटर जलीय घोल का छिडकाव करना चाहिए .

भूरा तना धब्बा रोग

इस रोग के आक्रमण होने पर कोमल मॉन्शल तना पर उन भद्दे भूरे धब्बों के पीछे अक्सर एन्थ्रेक्नोज और तना सड़न कवक के कारक होते हैं. ये संक्रमण छोटे, बदरंग क्षेत्रों के रूप में शुरू होते हैं जो पूरे पौधे में फैलते हुए तेजी से बड़ा रूप ले सकते हैं. उन धब्बों पर नज़र रखें जो बढ़ते या विलीन होते हैं, और आपके कैक्टस के मोजो में सामान्य गिरावट आती है.

नियंत्रण

इसके रोकथाम के लिए मैनकोजेब /2 ग्राम/लीटर जलीय घोल का छिडकाव कर नियंत्रित किया जा सकता है.

एन्थ्रेक्नोज

शब्द “एन्थ्रेक्नोज” कवक के कारण होने वाली बीमारियों को संदर्भित करता है जो एसरवुलि (ड्यूटेरोमाइकोटिना, कोलोमाइसेट्स) नामक संरचनाओं में कोनिडिया उत्पन्न करते हैं. ये कवक पत्तियों, फूलों, फलों और तने के उत्तकों को संक्रमित करता हैं .

नियंत्रण

इसके रोकथाम के लिए मैंकोजेब/2 ग्राम/लीटर जलीय घोल का छिडकाव कर नियंत्रित किया जा सकता है.

अन्य नुकसान करने वाले कारक

कभी-कभी नए कोमल मान्शल तना को बीटल, चीटियाँ एवं पंक्षियों द्वारा नुकशान पहुंचाया जाता है. बीटल तना को खरोच कर नुकशान पहुंचातें है. चीटियाँ फल के रसीले रस को चूसकर फल पर दाग-धब्बे बना देतें है जबकि पंक्षियों अत्यधिक पके फल को चोंच मार कर खराब कर देतें है.

फलों की तुड़ाई एवं देख-रेख

ड्रैगन फ्रूट के फलों की तुड़ाई जुलाई से नवम्बर के मध्य में की जानी चाहिए. इस फसल में 3-4 बार फलों की तुड़ाई की जा सकती है. ड्रैगन फ्रूट  के फूल आने के 30-35 दिन बाद फल पक जाता है. घरेलू बाजार में बेचने के लिए छिलके का रंग हरे से लाल या गुलाबी में बदलने के 3-4 दिन बाद फलों का तुड़ाई किया जा सकता है. सुदूर मंडियों में भेजने के लिए रंग बदलने के एक दिन बाद ही तुड़ाई किया जाना चाहिए. फलों का तुड़ाई फलों को घड़ी की दिशा में घुमाकर किया जा सकता है या तुड़ाई के लिए चाकू का इस्तेमाल अधिक उपयुक्त है. तुड़ाई के समय फल की डंडी वाले भाग को नुकसान न पहुंचे. तुड़ाई के बाद फलों को छाया में रखें तथा डिब्बों में पैक करके मंडी में भेजें .

ड्रैगन फ्रूट में लागत एवं उपज

 ड्रैगन फ्रूट की खेती को लाभप्रद व्यवसाय के रूप में 6.0 से 7.5 लाख रुपये की लागत से आरम्भ किया जा सकता है. इस फसल में गहन प्रबंधन या देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है. फल उत्पादन को निकट के शहरी बाजारों में बेचकर अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकते हैं. रोपण के प्रथम वर्ष से ही फल लगने शुरू हो जाते हैं किन्तु उचित प्रबन्धन द्वारा फसल के दूसरे एवं तीसरे वर्ष के दौरान रू. 3-4 लाख/वर्ष/हे. तथा उचित प्रबन्धन द्वारा तीसरे वर्ष से औसत उपज लगभग १० से 12 टन प्रति हे. तक प्राप्त की जा सकती है.

ड्रैगन फ्रूट का भंडारण

भंडारण के दौरान फल की गुणवत्ता लम्बे समय तक बनी रहती है. कमरे के तापमान पर 5-7 दिनों तक तथा शीत भंडारण (18 से. तापमान) में 10-12 दिनों तक जबकि 8 से. तापमान पर 20-21 दिनों तक आसानी से भंडारित किया जा सकता है.

लेखक: अलीमुल इस्लाम
वि० व० वि०, कृषि प्रसार
कृषि विज्ञान केंद्र, किशनगंज

राजीव सिंह
वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान
कृषि विज्ञान केंद्र, किशनगंज

सुमन कुमारी
वि० व० वि०, उद्यान
कृषि विज्ञान केंद्र, अररिया, बिहार

वारिस हबीब
अनुसन्धान सहयोगी
कृषि विज्ञान केंद्र, किशनगंज, बिहार