अब क्यों जुड़ते जा रहे हैं स्टार्टअप स्टोरी में असफलता के अध्याय?

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एक शानदार शुरुआत के बाद भारत की स्टार्टअप स्टोरी में अब कई असफल अध्याय जुड़ने लगे हैं. आज बायजूज, फार्मइजी, मीशो, पेटीएम जैसे तमाम नाम है जिनके वित्तीय प्रदर्शन पर सवाल उठ रहे हैं.

विक्रांत निर्मला सिंह

ये स्टार्टअप बाजार में ग्राहक तो बना रहे हैं, लेकिन लाभ अर्जित नहीं कर पा रहे.
भारत में स्टार्टअप सेक्टर का उभार और उसका विस्तार एक बड़ी सफल कहानी है. स्टार्टअप ने ना सिर्फ इकॉनमी में व्यावसायिक नवाचार को बढ़ावा दिया, बल्कि ये रोजगार पैदा करने के मामले में भी अव्वल रहे है. डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) के आंकड़े बताते हैं कि 31 दिसंबर 2023 तक देश में कुल रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स की संख्या 1,17,254 थी और इन्होंने कुल 12.42 लाख से अधिक नए रोजगार दिए हैं.

  • यह जानकर आश्चर्य होगा कि 2014 में यह संख्या महज 350 थी. स्टार्टअप का आर्थिक प्रभाव ऐसे समझिये कि आज देश में कुल 113 यूनिकॉर्न ($1 बिलियन से अधिक मूल्य वाली एक स्टार्टअप कंपनी) है, जिनका कुल मार्केट वैल्यूएशन 350 अरब डॉलर से अधिक है. लेकिन भारत के इस स्वर्णिम स्टार्टअप कहानी में अब कई असफल अध्याय जुड़ने लगे हैं. आज बायजूज, फार्मइजी, मीशो, पेटीएम आदि जैसे तमाम नाम है जिनके वित्तीय प्रदर्शन पर सवाल उठ रहे हैं.

सवाल इनके वैल्यूएशन के साथ-साथ राजस्व मॉडल पर भी उठाये जा रहे हैं. ये स्टार्टअप बाजार में ग्राहक तो बना रहे हैं, लेकिन लाभ अर्जित नहीं कर पा रहे. उदाहरण के लिए बायजूज के संस्थापक बायजू रवींद्रन को कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए अपने और परिवार के सदस्यों के घर गिरवी रखने पड़े हैं.

भारत में स्टार्टअप असफल क्यों हो रहे हैं?

इस सवाल का जवाब समझने से पहले हमें ये तथ्य स्वीकारना चाहिए कि हम आज जितने भी बड़े स्टार्टअप देख रहें हैं, उनमें से अधिकतर सर्विस सेक्टर में काम कर रहे हैं. इसका कारण ये है कि सर्विस-बेस्ड स्टार्टअप को सेवाएं प्रदान करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और आउटसोर्सिंग में भारत की विशेषज्ञता का लाभ आसानी से मिल रहा है. इसके अलावा प्रोडक्ट-बेस्ड स्टार्टअप की तुलना में सेवा-आधारित स्टार्टअप में प्रवेश के लिए बाधाएं और पूंजी निवेश की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम है. इसलिए हमें भारत के स्टार्टअप सेक्टर (Startup India) को तीन हिस्सों में बांट कर देखना चाहिए- 1. प्रोडक्ट-बेस्ड स्टार्टअप 2. सर्विस-बेस्ड स्टार्टअप 3. प्रोडक्ट और सर्विस का मिश्रण.

सामान्यतः भारत में स्टार्टअप के सामने जो पहली चुनौती है वो बजट की है. इकॉनमी के कोविड से उभरने के बाद बाजार में कई सेक्टर में ऑनलाइन ग्राहकों की संख्या तेजी से घटी है. खासकर उन सेवाओं में जहाँ ग्राहक आज भी ऑफलाइन माध्यम को तवज्जो देता है. उदाहरण के लिए एड-टेक और ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवा. आज बड़े स्टार्टअप निवेशक ऐसे सेवाओं के भविष्य को लेकर आशंकित है कि क्या उनके पैसे रिकवर हो पाएंगे?

दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि बहुत से स्टार्टअप का प्रोडक्ट आईडिया क्या है, ये निवेशकों को समझ नहीं आता. उदाहरण के लिए कई कंपनियां आज फ़ूड डिलीवरी या क्विक सर्विसेज में लगी हुई है लेकिन इसके पास खुद का कोई प्रोडक्ट नहीं है. ये ना किसी रेस्तरां के मालिक है और ना ही ये कोई फूड प्रोडक्ट बनाते हैं, जबकि इस सेक्टर का लाभ सर्विस के बजाय प्रोडक्ट में ज्यादा है. उदाहरण के लिए रिलायंस रिटेल द्वारा समर्थित क्विक कॉमर्स कंपनी डुंजो को वित्त वर्ष 2023 में 1,800 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. आज यह कंपनी बिकने के कगार पर खड़ी है.

इसके अलावा भारत के स्टार्टअप (Startup India) अब बाजार में बड़ी प्रतिस्पर्धा देख रहे हैं. खासकर ई-कॉमर्स, फिनटेक और फूड डिलीवरी जैसे क्षेत्रों में कई मार्केट प्लेयर होने की वजह से सेवाओं के दर में बढ़ोतरी मुश्किल हो गयी है. अगर कोई एक प्लेटफार्म डिलीवरी चार्ज बढ़ा दे तो ग्राहक तुरंत दूसरे प्लेटफार्म पर शिफ्ट हो जाते हैं. इसमें ग्राहक लॉयल्टी की जगह बचत देखते हैं क्योंकि उनका प्रोडक्ट सप्लायर नहीं बदलता, बस सेवा देने वाली कंपनी बदल जाती है.

Startup से जुड़े आंंकड़े क्या कहानी कहते है?

भारत में अगर हम सिर्फ यूनिकॉर्न्स की फाइनेंसियल परफॉरमेंस का अध्ययन करें तो पाते हैं कि बड़ी संख्या में यूनिकॉर्न्स अभी भी घाटे में हैं. एक निजी संस्था की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में कुल 100 यूनिकॉर्न्स में से केवल 18 ही लाभ में थे. विशेष रूप से बायजू, ओला, ओला इलेक्ट्रिक, प्रिस्टिन केयर जैसी कई कंपनियाँ घाटे में हैं. लेकिन ड्रीम11, जोमैटो, इन्फो एज, नायका, रेज़र पे आदि जैसे स्टार्टअप ने लाभ दर्ज किया है. अगर नए यूनिकॉर्न कंपनियों को देखे तो फिजिक्सवाला, ऑक्सीजो, बोट आदि जैसी कंपनियों ने वित्त वर्ष 2022 में मुनाफा कमाया था. वहीं राजस्व के मामले में आज भी फ्लिपकार्ट टॉप पर बना हुआ है लेकिन घाटे के मामले में भी फ्लिपकार्ट सबसे आगे है.

क्यों स्टार्टअप अब आईपीओ की राह देख रहे?

हाल के समय में जो एक बड़ा परिवर्तन देखा गया है कि कुछ बड़े स्टार्टअप अब आईपीओ लाने की तैयारी में हैं. हालांकि पेटीएम, जोमैटो, नायका आदि जैसी कंपनियां पहले से बाजार में सूचीबद्ध हैं. नए नामों में ओयो, बोट, गो डिजिट, फर्स्ट क्राई, ओला आदि प्रमुख हैं. अब स्टार्टअप कंपनियां बाजार में आम निवेशकों से पूंजी जुटाना चाहती हैं. मार्केट वैल्यूएशन, मार्केटिंग और ग्राहक विस्तार के आधार पर इनको भरोसा है कि बाजार में लिस्ट होने पर आम निवेशक बड़ी दिलचस्पी दिखाएंगे. वैसे इन कंपनियों की लिस्टिंग प्रमोटर्स को अपनी हिस्सेदारी बेचने का रास्ता भी दे देंगी.

बहरहाल, भले ही भारतीय स्टार्टअप्स मुनाफे से ज्यादा घाटे में चल रहे हों, लेकिन इनका भविष्य अभी भी उज्ज्वल है. भारत में जिस तरह नई टेक्नोलॉजी अपनाने की गति दिखाई दे रही है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि स्टार्टअप का भविष्य अच्छा है, साथ ही देश के बड़े इंटरनेट यूजर बेस और बढ़ते डिजिटलीकरण ने भी काफी उम्मीदें बढ़ाई हैं. इसके अलावा, वर्तमान मोदी सरकार भी स्टार्टअप्स को लेकर काफी पॉजिटिव है.

स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़वा देने के लिए 16 जनवरी, 2016 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्टार्टअप इंडिया पहल कि शरुआत की थी. आज इसके तहत नए स्टार्टअप को कर लाभ, सरल लीगल प्रावधान, फास्ट-ट्रैकिंग आईपीआर और बहुत से लाभ दिए जा रहे है. स्टार्टअप्स के लिए फंड ऑफ फंड्स (एफएफएस) योजना और स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (एसआईएसएफएस) के तहत मदद की जा रही है.