ग्रामीण खर्च के बढऩे का परिदृश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुआयामी

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यह अभूतपूर्व खाद्यान्न भंडारण व्यवस्था नए भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुआयामी उपयोगिता देते हुए दिखाई देगी। हम उम्मीद करें कि लोकसभा चुनाव के बाद गठित होने वाली नई सरकार कृषि एवं ग्रामीण विकास के साथ-साथ कृषि सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी…

डा. जयंती लाल भंडारी

हाल ही में एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के तेजी से बढ़ते हुए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका है। बढ़ते हुए कृषि उत्पादन और ग्रामीण बाजारों में मांग बढऩे से निजी खपत में भी तेजी आ रही है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और प्रमुख मौसम एजेंसी स्काईमेट ने कहा है कि अनुकूल मानसूनी मौसम के कारण इस वर्ष 2024 में भारत में अच्छी वर्षा के स्पष्ट संकेत खेती और भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के द्वारा कहा गया है कि इस वर्ष 2024 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के सामान्य रहने की उम्मीद है जिससे कृषि गतिविधियों में और तेजी आएगी। ग्रामीण बाजारों में भी मांग बढऩे से अर्थव्यवस्था को तेज गति मिलेगी। गौरतलब है कि विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण अधिक खर्च कर रहे हैं। गांवों में न केवल कृषि संबंधी संसाधनों की अधिक बिक्री हो रही है, वरन गांवों में फ्रिज, दोपहिया वाहन और टीवी की खरीददारी में सबसे उच्च स्तर पर है। यह सब ग्रामीण भारत में भविष्य के प्रति उत्साह और वर्तमान के बेहतर परिणामों का प्रतीक है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत में पिछले एक दशक में शहरी परिवारों के मुकाबले ग्रामीण परिवारों का खर्च तेजी से बढ़ा है। ग्रामीण भारत के विकास के लिए सरकारी योजनाओं के तहत किए गए भारी व्यय, ग्रामीणों के रोजगार की मनरेगा योजना तथा स्वरोजगार की ग्रामीण योजनाओं से ग्रामीण परिवारों की आमदनी में तेज इजाफे के साथ उनकी क्रय शक्ति और मांग में भारी इजाफा हुआ है। इससे ग्रामीण भारत की आर्थिक ताकत में इजाफा हुआ है। यद्यपि अभी आम चुनाव के बाद जून 2024 में गठित होने वाली नई सरकार के मूर्तरूप लेने में कोई दो माह बकाया है, लेकिन उच्च प्रशासनिक स्तर पर वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के मकसद से जिन क्षेत्रों के लिए आगामी पांच सालों के लिए प्रभावी रणनीति बनाई जाना शुरू की गई है, उनमें कृषि भी प्रमुख है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस समय पूरी दुनिया में भारत को खाद्यान्न का नया वैश्विक कटोरा माना जा रहा है। भारत दुनिया का तीसरा बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। दुनिया में भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना हुआ है। गेहूं तथा फलों के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर तथा सब्जियों के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। विश्व स्तर पर भारत केला, आम, अमरूद, पपीता, अदरक, भिंडी, चावल, चाय, गन्ना, काजू, नारियल, इलायची और काली मिर्च आदि के प्रमुख उत्पादक के रूप में जाना जाता है। साथ ही खाद्य प्रसंस्करण के मामले में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। निश्चित रूप से पिछले 10 वर्षों में कृषि एवं ग्रामीण विकास का नया आधार तैयार हुआ है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 15 फीसदी है।

सरकार के द्वारा ग्रामीण एवं कृषि विकास के लिए एक के बाद एक रणनीतिक कदम उठाए गए हैं। कृषि बजट में 10 वर्षों में 5 गुना वृद्धि हुई है। किसानों के सशक्तिकरण, फसलों के लिए किसानों को लाभप्रद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिए जा रहे हैं। सरकार के द्वारा 11 करोड़ से अधिक किसानों के जनधन खातों में पीएम किसान सम्मान निधि के तहत करीब 3 लाख करोड़ रुपए सीधे हस्तांतरित होने जैसे प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में उर्वरक, बीज, कृषि, रसायन, ट्रैक्टर एवं कृषि उपकरण, जैसी कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई वस्तुओं के अधिक उपयोग से किसानों को लाभ हुआ है और इन सबसे जहां एक ओर भारत में कृषि क्षेत्र अधिक प्रतिस्पर्धी एवं लाभदायक बन रहा है, वहीं दूसरी ओर छोटे किसान अधिक लाभान्वित हो रहे हैं। जहां कोविड-19 की आपदाओं से लेकर अब तक भारत वैश्विक स्तर पर दुनिया के जरूरतमंद देशों की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रहा है, वहीं भारत ने दुनियाभर में कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ाने का अवसर भी मुठ्ठियों में लिया है। भारत से कृषि निर्यात लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भारत से अनाज, गैर-बासमती चावल, बाजरा, मक्का और अन्य मोटे अनाज के अलावा फलों एवं सब्जियों के निर्यात में भारी वृद्धि देखी गई है। भारत के कृषि उत्पादों के बड़े बाजारों में अमरीका, चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया, नेपाल, ईरान और मलेशिया शामिल हैं। कई छोटे देशों के बाजार भी मुठ्ठियों में आए हैं। उल्लेखनीय है कि विश्व बाजार में भारत के मसालों की खुशबू की धमक बहुत अधिक बढ़ी है। चूंकि देश में मसाले की खेती में गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखा जाता है, अतएव इसका असर वैश्विक बाजार में भारतीय मसालों की निर्यात मांग बढऩे के रूप में रेखांकित हो रहा है। इस समय दुनिया में कृषि निर्यात में भारत का स्थान सातवां है। भारत से करीब करीब 50 हजार डॉलर से अधिक मूल्य का कृषि निर्यात होता है।

खाद्य प्रसंस्करण में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां निर्यात में वृद्धि नहीं हुई है। इस समय भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 12 लाख टन से बढक़र दो सौ लाख टन हो गई है। पिछले नौ वर्षों में खाद्य प्रसंस्करण निर्यातों में 15 गुना वृद्धि हुई है। निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 से बढक़र 23 प्रतिशत हो गई है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण के तहत पांच क्षेत्र हैं। एक डेयरी क्षेत्र, दो फल एवं सब्जी प्रसंस्करण, तीन अनाज का प्रसंस्करण, चार मांस मछली एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण तथा पांच, उपभोक्ता वस्तुएं पैकेट बंद खाद्य और पेय पदार्थ। खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर के यह भी उल्लेखनीय हैं कि इन प्रमुख पांचों क्षेत्रों की व्यापक संभावनाओं को मुठ्ठियों में करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इससे ग्रामीण भारत लाभान्वित हो रहा है। यह बात महत्वपूर्ण है कि फरवरी 2024 में भारत के द्वारा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबूधाबी में आयोजित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा, खाद्यान्नों के सार्वजनिक भंडारण एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्थायी समाधान के लिए जिस तरह प्रभावी पहल की, उसके कारण इस सम्मेलन में इन मुद्दों पर कई विकसित देश भारत के किसानों के हितों के प्रतिकूल कोई प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा पाए।

ऐसे में अब भी भारत अपने किसानों के उपयुक्त लाभ के लिए नीतियां बनाते हुए खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक भंडारण की सुविधा से कृषि और ग्रामीण विकास के अभियान को आगे बढ़ा सकेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि 24 फरवरी 2024 को सरकार ने सहकारी क्षेत्र में दुनिया की जिस सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना के लिए प्रायोगिक परियोजना के तहत जिन 11 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को लक्षित किया गया है, उनके माध्यम से पैक्स की किसानों के हित में बहुआयामी भूमिका होगी। ऐसे में नई खाद्यान्न भंडार योजना के माध्यम से देश में खाद्यान्न भंडारण की जो क्षमता फिलहाल 1450 लाख टन की है, उसे अगले 5 साल में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करके कुल खाद्यान्न भंडारण क्षमता 2150 लाख टन किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अभूतपूर्व खाद्यान्न भंडारण व्यवस्था नए भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुआयामी उपयोगिता देते हुए दिखाई देगी। हम उम्मीद करें कि लोकसभा चुनाव के बाद गठित होने वाली नई सरकार कृषि एवं ग्रामीण विकास के साथ-साथ कृषि सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी और इससे किसानों व ग्रामीण भारत के चेहरे पर मुस्कुराहट बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगी। इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि में व्यापक विकास के आसार हैं।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री