खरीफ सीजन में किसानों को अरहर-उड़द और मूंग फसलों की बुवाई के लिए कर रहा है आकर्षित

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बीते 6 महीने से लगातार दालों की महंगाई 18 फीसदी के ऊपर दर्ज की जा रही है. दालों की बढ़ती कीमतों ने इस बार खरीफ बुवाई रकबा बढ़ने की संभावनाओं को बल दिया है. ट्रेड और इंडस्ट्री एक्सपर्ट ने कहा है कि रिकॉर्ड ऊंची कीमतें और सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश का पूर्वानुमान किसानों को इन प्रमुख खरीफ फसलों की बुवाई के लिए आकर्षित कर रहा है.

खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई का वक्त अब नजदीक है. इस बार खरीफ बुवाई वाली अरहर, उड़द और मूंग जैसी दालों का रकबा 15 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. क्योंकि, किसानों ने दालों की अधिक कीमत मिलने की संभावनाओं को देखते हुए दालों की बुवाई की तैयारी कर ली है. जबकि, इस बार अच्छी मानसूनी बारिश की संभावनाओं ने किसानों को दालों के उत्पादन की ओर ध्यान खींचा है. सरकार भी दालों की खरीद और बिक्री के लिए ऑनलाइन पोर्टल लाने के साथ ही अधिक एमएसपी देने जैसे प्रयास कर रही है. 

बीते 6 महीने से लगातार दालों की महंगाई 18 फीसदी के ऊपर दर्ज की जा रही है. दालों की बढ़ती कीमतों ने इस बार बुवाई रकबा बढ़ने की संभावनाओं को बल दिया है. अनुमान है कि अधिक कीमतों के कारण खरीफ दालों का रकबा 15 फीसदी तक बढ़ सकता है. ट्रेड और इंडस्ट्री एक्सपर्ट ने कहा है कि रिकॉर्ड ऊंची कीमतें और सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश का पूर्वानुमान किसानों को इन प्रमुख खरीफ फसलों की बुवाई के लिए आकर्षित कर रहा है. जबकि, सोयाबीन की बुवाई से कम रिटर्न मिलने के चलते भी किसान दालों की ओर रख कर रहे हैं. 

200 रुपये तक के पार पहुंची अरहर दाल की कीमत 

पिछले दो वर्षों में दालों के कम घरेलू उत्पादन के कारण देश में इसकी कीमतें ऊंची बनी हुई हैं. यहां तक कि आयात शुल्क हटाने के सरकार के कदम से भी कोई खास मदद नहीं मिली. उपभोक्ता तुअर यानी अरहर दाल के लिए 180 से 200 रुपये प्रति किलो का भुगतान कर रहे हैं. 2023 में महत्वपूर्ण बुआई सीजन के दौरान देरी और कम बारिश के कारण, खरीफ सीजन में दालों का रकबा पिछले वर्ष की तुलना में 5.4 फीसदी घटकर 123.57 लाख हेक्टेयर हो गया था. इस साल अनुमान है कि अरहर फसल के तहत बोए गए क्षेत्र में 10-15 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है. 

दालों की बुवाई का रुख क्यों कर रहे किसान 

  1. खरीफ मौसम में दालों की बुवाई के लिए इस बार किसानों का रुझान दिख रहा है. इसके कई कारण हैं. पहला तो जिन किसानों पिछली बार दालों की बजाय सोयाबीन की खेती की थी, उन्हें उचित मुनाफा नहीं मिल सका है. ऐसे किसान दालों की ओर शिफ्ट कर सकते हैं. 
  2. दाल किसानों को फसल का अधिक दाम दिलाने और तेज बिक्री के लिए केंद्र ने सरकारी पोर्टल  ई-समृद्धि लॉन्च किया है, जिसके जरिए सहकारी समतियां नेफेड और एनसीसीएफ सीधे किसानों से दालों की खरीद कर रही हैं और उन्हें 48 घंटे के अंदर भुगतान कर रही हैं. ऐसे में किसानों को दालों की बुवाई की ओर शिफ्ट करना उचित लग रहा है.
  3. कम उत्पादन और ज्यादा खपत के चलते पूरे साल दालों की कीमतें आसमान पर छाई रहीं. यहां तक की आयात के बाद भी बाजार में दालों की उपलब्धता पूरी करने में सरकार के पसीने छूट गए. सरकार ने भारत ब्रांड से चना समेत अन्य दालों की बिक्री शुरू की. 
  4. भारत मौसम विज्ञान विभाग ने इस साल औसत से अधिक मॉनसून बारिश का अनुमान लगाया है. क्योंकि ला नीना उभरने की उम्मीद है जो आमतौर पर भारतीय मॉनसून वर्षा कराने में मददगार है. ऐसे में किसानों को फसल सिंचाई के लिए भरपूर पानी की उपलब्धता बनी रहने की संभावना भी उन्हें दालों की बुवाई की ओर मोड़ रही है. 
  5. दालों का एमएसपी रेट बढ़ा रही सरकार 

केंद्र सरकार ने दाल खरीद दर यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी रेट को बढ़ाया है, जो किसानों को दाल बुवाई के लिए प्रेरित कर रहा है. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार अरहर, मूंग, उड़द दाल का एमएसपी 2023-24 सीजन के लिए केंद्र सरकार ने बढ़ाया है.

  1. तूर यानी अरहर दाल का एमएसपी रेट 2023-24 सीजन के लिए 400 रुपये बढ़ाकर 7000 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है.
  2. मूंग दाल की एमएसपी 2023-24 सीजन के लिए सरकार ने 800 रुपये बढ़ाकर 8558 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है.
  3. उड़द दाल की एमएसपी 2023-24 सीजन के लिए सरकार ने 350 रुपये बढ़ाकर 6950 रुपये प्रति क्विंटल किया है.