कृषि क्षेत्र में महिलाओं का योगदान किसी से छिपा नही है, लेकिन उनके कामों की चर्चा बहुत कम होती है. सूखा प्रभावित महाराष्ट्र के नासिक जिले के अभोना गांव की ललिता मोरे भी ऐसी ही महिला किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने खेती में नाम तो खूब कमाया, लेकिन उनकी कभी चर्चा नहीं हुई. ललिता ने खेती-किसानी में असल संघर्ष देखा है. उन्होंने खेती के इस संघर्ष का सामना करते हुए खेती से मुनाफा कमाया, जिससे उन्होंने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया है, लेकिन अब फसलों के दामों की दुर्दशा देख निराश हैं. ऐसे में उन्होंने इन हालातों को देखते हुए अपने बच्चों को खेती-किसानी से दूर भी रखने का फैसला लिया है.
ने ललिता ने आखिर उन्होंने अपने बच्चों को कृषि से दूर रखने का क्यों फैसला लिया, जबकि इसी काम से उनका घर चलता है और बच्चे पढ़ाई कर पाए हैं. ललिता ने कहा कि पति की मौत के बाद उन्होंने घर-बार संभालने के साथ ही खेती करना भी शुरू किया. क्योंकि घर चलाने का दूसरा कोई जरिया नहीं था.
संघर्ष बताते-बताते छलक पड़े आंसू
ललिता प्याज की खेती करती हैं. पति की मौत के बाद बच्चों को पालने और पढ़ाने-लिखाने के लिए खेती में जो संघर्ष किया उसे याद करके उनकी आंखों से आंसू छलक गए. वो कहती हैं कि जैसे-तैसे उन्होंने खेती के जरिए ही बच्चों को पढ़ा दिया है, लेकिन अब फसलों के दाम की इतनी बुरी स्थिति है कि उससे आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है.
बच्चों को खेती नहीं करने दूंगी
अब खेती में फायदा नहीं रहा. किसान की मेहनत भी नहीं मिल पा रही है. इसलिए वो अपने बच्चों को कभी खेती-किसानी में नहीं आने देंगी. वो कहती हैं कि जो संघर्ष मैंने झेला है उसे बच्चों की जिंदगी में नहीं आने देंगी. मोरे ने कहा कि फसलों में पानी देने के लिए रात को 3 बजे खेतों में जाना पड़ता था. वह बच्चे को साथ लेकर खेत में पहुंचती और फसलों की सिंचाई करती. क्योंकि लाइट रात में आती थी. खुद ट्रैक्टर चलाया, स्प्रे किया. मेहनत करके पति का खेती के लिए लिया गया लोन चुकाया. फिर भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ.
कैसे बढ़ेगी आय, क्यों करेगा कोई खेती?
ललिता मंडी में 30 क्विंटल प्याज बेचने गईं तो इसका दाम सिर्फ सवा सौ रुपये लगा, फिर वो प्याज लेकर वापस आ गईं. वो कहती हैं कि हमारे जैसी कई औरतें हैं जिन्होंने गहने गिरवी ऱखकर प्याज की खेती की थी, लेकिन अब इसकी खेती कम दाम की वजह से किसानों को रुला रही है. ऐसे में कौन खेती करेगा. बच्चे नौकरी कर लेंगे वो ठीक है लेकिन खेती नहीं.
घाटे का सौदा हुई खेती
मोरे ने सात एकड़ में प्याज की खेती की थी, लेकिन बाजार में प्याज के दामों में जारी गिरावट की वजह से उन्हें बहुत घाटा हो रहा है. वो कहती हैं कि या तो अब प्याज की खेती बंद कर देंगी या फिर बहुत कम कर देंगी. बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को काफी नुकसान पहुंचा है, ऊपर से दाम बहुत कम हो गया है. स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था है नहीं, इसलिए अब प्याज की खेती घाटे का सौदा हो गई है.