कहानी जॉर्ज और लैनी नाम के दो मजदूर किसानों के इर्द-गिर्द घूमती है. वे एक खेत से दूसरे खेत दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं. जॉर्ज का सपना है कि उसका अपना एक छोटा सा खेत हो.
दुनिया भर के फिल्म जगत में प्रसिद्ध कहानियों और उपन्यासों पर फिल्म बनाने की परंपरा रही है. हमारे यहाँ ‘पिंजर’, ‘राज़ी’, ‘सात खून माफ’ ‘एक चादर मैली सी’, ‘काइ पो चे’ जैसी बहुत सी सफल फिल्में कहानी और उपन्यासों पर आधारित रही हैं. ऐसी कुछ विदेशी फिल्मों का ज़िक्र भी यहाँ किया गया है जो किसानों के हालात पर लिखी गयी कहानियों पर आधारित रहीं.
ऐसी ही एक अमेरिकी फिल्म है- ‘ऑफ माइस एंड मैन’. 1937 में जॉन स्टाइनबेक द्वारा लिखित उपन्यास प्रकाशित हुआ था ‘ऑफ माइस एंड मैन’ (ये चूहे ये आदमी). 1929 से 1939 तक अमेरिका में आई विनाशकारी आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में लिखा यह उपन्यास दो गरीब किसान श्रमिकों की दास्तान कहता है. लेकिन कहानी कुछ इस तरह से लिखी गई है कि यह मजदूरों से परे मनुष्य मात्र की अस्तित्वगत त्रासदी को भी दर्शाती है.
प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित फिल्म
यह उपन्यास प्रकाशित होते ही अमेरिका में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में मशहूर हो गया. यह इसलिए भी हुआ कि स्टाइनबेक का यह उपन्यास यथार्थ को तो दर्शाता ही था, मानवीय अस्तित्व पर एक दार्शनिक नज़रिया भी पेश करता था. इस लोकप्रिय उपन्यास को 1939 में पहली बार पर्दे पर उतारा गया. एक नाटक के रूप में अनेक बार इसका मंचन किया गया. हिन्दी नाटकों में भी इसे प्रमुखता से मंचित किया गया और यह भारत में भी बहुत लोकप्रिय हुआ.
बहरहाल, आज हम बात कर रहे हैं 1992 में इस पर एक बार फिर बनाई गयी फिल्म के बारे में. निर्देशक गैरी सिनीस ने होर्टन फूट के नाट्य रूपान्तरण का प्रयोग किया इस फिल्म को बनाने में. सिनीस ने मुख्य किरदारों में से एक की भूमिका भी निभाई.
दो खेतिहर मजदूरों की कहानी
कहानी जॉर्ज और लैनी नाम के दो मजदूर किसानों के इर्द-गिर्द घूमती है. वे एक खेत से दूसरे खेत दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं. जॉर्ज का सपना है कि उसका अपना एक छोटा सा खेत हो.
लैनी दिमाग से कमजोर है लेकिन शरीर से मजबूत और हट्टाकट्टा. दोनों में एक अजीब भावनात्मक रिश्ता है. जॉर्ज लैनी को अपना दूर के रिश्ते का भाई बताता है. लंबे चौड़े लैनी के साथ रहने से दुबली काया के जॉर्ज को भी खेतों में काम जल्द मिल जाता है. और मानसिक रूप से अविकसित लैनी को जॉर्ज संभालता है.
लैनी को खरगोश और गिलहरी जैसे नन्हें जानवरों को सहलाना अच्छा लगता है. लेकिन उसे यह नहीं समझ आता कि उसे कितने ज़ोर से सहलाना चाहिए. नतीजतन वह अक्सर इन जानवरों को प्यार से सहलाते हुए जान से मार देता है.
इसी कारण उन्हें एक खेत से भागना पड़ता है और वे दूसरे गाँव जाकर एक और फार्म में नौकरी करने लगते हैं जहां कर्ली नाम का किसान उनका बॉस है. जॉर्ज पूरी मेहनत से काम करता है क्योंकि वह जल्द से जल्द अपना एक छोटा सा खेत खरीदना चाहता है. लैनी का सरल और कमजोर दिमाग खेतों में काम और फ़र वाले जानवरों को सहलाने के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाता. जल्द ही कर्ली का घमंडी और बदतमीज़ बेटा लैनी को परेशान करने लगता है और उसकी खूबसूरत बीवी जॉर्ज को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए लैनी से दोस्ती गाँठती है. जॉर्ज बार बार लैनी को आगाह करता रहता है कि कर्ली की बीवी से दोस्ती ना करे.
मंदी का दौर है. सभी लोग अपना-अपना पेट पालने की मशक्कत में जुटे हैं. इस बीच लैनी एक नन्हें से कुत्ते को पाल लेता है और जानवरों के बालों को सहलाने की अपनी अजीबोगरीब आदत के चलते ना सिर्फ वह अपने पालतू कुत्ते को मार डालता है बल्कि कर्ली की बीवी भी मारी जाती है. एक बार फिर फ़ार्म छोड़ कर भागने की स्थिति है, लेकिन अब की बार अपराध गंभीर है. कर्ली गुस्सैल मजदूरों की भीड़ लेकर लैनी को मारने आने ही वाला है कि जॉर्ज घबराए और दिमागी रूप से अक्षम लैनी को शांत करने के लिए अपना खेत होने का प्रिय सपना दोहराता है- “हमारा एक सपना है. एक दिन हमारा एक मकान होगा और कुछ एकड़ का खेत. एक जगह जिसे हम घर कह सकें”. और हिंसक भीड़ से बचाने के लिए खुद उसे गोली मार देता है.
आर्थिक मंदी के दौरान अमेरीकन ड्रीम के टूटने और कटु यथार्थ की दास्तां
आर्थिक मंदी के दौर में खेतिहर मजदूरों की दुर्दशा दिखलाने के साथ ही यह फिल्म स्त्रियों के हालात, रिश्तों की जटिलताएँ और जीवन के अधूरेपन को भी बहुत संवेदनशीलता से पेश करती है. जिस ‘अमेरीकन ड्रीम’ की बात बहुत बढ़ा चढ़ा कर की जाती है- वह एक आम प्रवासी मजदूर के लिए बस अपने एक छोटे से घर का सपना ही होता है और मुश्किल हालात में यह सपना भी बेरहमी से टूट जाता है.
वृहत्तर स्तर पर यह कहानी प्रकृति और जीवन के हालात के सामने मनुष्य और जानवर की असहायता को भी अभिव्यक्त करती है. जॉर्ज एक समझदार इंसान है लेकिन लैनी की शारीरिक ताकत के बगैर वह अधूरा है, लैनी भी जॉर्ज के बगैर असहाय है क्योंकि उस कमअक्ल को कोई समझ ही नहीं सकता; कर्ली की पत्नी आकर्षक है, सुविधा सम्पन्न भी है, लेकिन उपेक्षा और अकेलेपन के कारण हताश है. खुद कर्ली अपनी दुष्टता के साथ ही असुरक्षित भी नज़र आता है.
एक काव्यात्मक और दार्शनिक कमेन्ट करती फिल्म
इस तरह एक बेहद यथार्थवादी कहानी होते हुए भी फिल्म के किरदार और स्थितियाँ इसे दार्शनिक और काव्यात्मक बना देते हैं.
फिल्म को शूट करने के लिए कैलिफोर्निया के आसपास का इलाका निश्चित किया गया था, जो धूल भरा है और किसानों की विषम परिस्थितियाँ दिखलाने के लिए माकूल. इस अर्थ में फिल्म की लोकेशन खुद एक किरदार के तौर पर उभरती है. फिर स्टाइनबैक के उपन्यास की भाषा को संवादों में उतारना भी मुश्किल काम था, जो स्क्रीनप्ले लेखक होर्टन फूट ने बखूबी किया.
अक्तूबर 1992 में यह फिल्म रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर इसने ठीक-ठाक कारोबार ही किया. बहरहाल, दुनिया भर के समीक्षकों ने उपन्यास के बेहतरीन फिल्म रूपान्तरण के लिए ‘ऑफ माइस एंड मैन’ की भरपूर तारीफ की. यह फिल्म कुछ राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए नामित भी की गई लेकिन कोई पुरस्कार नहीं जीत पाई.
यह ज़रूरी भी नहीं कि हर अच्छी फिल्म कोई पुरस्कार जीत ही ले. आज भी अनेक फिल्म निर्देशक, अभिनेता और स्क्रिप्टलेखक इसे अपनी पसंदीदा फिल्म मानते हैं. आर्थिक मंदी के दौरान टूटे अमेरीकन ड्रीम की किरचें बटोरते हुए प्रवासी खेतिहर मजदूर जॉर्ज और लैनी आज भी अमेरीकन समाज की स्मृति में जीवित हैं और हमेशा रहेंगे.