अवस्कुलर नेक्रोसिस : खून की कमी से मरने लगती है हड्डियां

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एवैस्कुलर नेक्रोसिस में पर्याप्त मात्रा में खून न मिलने पर हड्डी कुछ समय के बाद सड़ने लग जाती है। इस बीमारी में एवैस्कुलर नेक्रोसिस  हड्डियों में होने वाली एक ऐसी बीमारी होती है जिसमें खून की कमी से बोन टिशू मरने लगते हैं। आसान भाषा में इस स्थिति को हड्डी की मौत या हड्डियों का गलना भी कहते हैं। इसके अलावा आयुर्वेद में इसे ‘अस्थि क्षय’ या ‘अस्थि मज्जा क्षय’ भी कहते हैं। एवैस्कुलर नेक्रोसिस या ओस्टियो नेक्रोसिस की प्रक्रिया में आमतौर पर महीनों से लेकर सालों तक का समय लगता है।   आयुर्वेद में इसे पित्त द्रव (कड़वे जड़ी-बूटी) की मदद से ठीक किया जाता है।

         हर साल भारत में एवस्कुलर नेक्रोसिस के लगभग 16,000 नए मामले मिलते हैं। हालांकि इस बीमारी के प्रसार को लेकर अभी और सर्वे की आवश्यकता है। इस बीमारी में जल्द या बाद में कुल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की आवश्यकता होती है। क्योंकि एवस्कुलर नेक्रोसिस से प्रभावित होने वाला सबसे आम जोड़ कूल्हा होता है। इस बीमारी से कोई भी प्रभावित हो सकता है। लेकिन 30 से 50 साल की उम्र के लोगों में यह स्थिति सबसे आम होती है।

​      हड्डी गलने का कारण

    हाई डोज स्टेरॉयड दवाओं का सेवन,बहुत अधिक शराब का सेवन, एक्सीडेंट,मोटापा,कीमोथेरेपी या रेडियोथैरेपी,सिकल सेल एनिमिया , ट्रांसप्लाट सर्जरी,असंतुलित कॉलेस्ट्रॉल

             लक्षण

         कुछ लोगों में एवस्कुलर नेक्रोसिस के शुरुआती चरणों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। जैसे-जैसे स्थिति बिगड़ती जाती है, प्रभावित जोड़ों पर भार डालने दर्द होने लगता है। इसे आप लेटे हुए भी महसूस कर सकते हैं। दर्द हल्का या गंभीर हो सकता है। यह आमतौर पर धीरे-धीरे विकसित होता है। कूल्हे के एवस्कुलर नेक्रोसिस से जुड़ा दर्द कमर, जांघ या नितंब पर केंद्रित हो सकता है। कूल्हे के अलावा, कंधे, घुटने, हाथ और पैर प्रभावित हो सकते हैं। कुछ लोगों को दोनों तरफ एवस्कुलर नेक्रोसिस हो जाता है, जैसे कि दोनों कूल्हों में या दोनों घुटनों में।

         निदान कैसे किया जाता है

       एमआरआई और सीटी स्कैन द्वारा हड्डी में शुरुआती परिवर्तनों को दिखा सकते हैं,जो एवस्कुलर नेक्रोसिस का संकेत दे सकते हैं।

​        आयुर्वेदिक उपचार

      आयुर्वेद में एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसी गंभीर बीमारी का भी इलाज संभव है। हड्डी के सड़ने या गलने की स्थिति को ठीक करने के लिए मरीज को पित्त द्रव या कड़वे जड़ी-बूटी का सेवन करवाया जाता है। यह माना जाता है कि कड़वे हर्ब हड्डियों के लिए सेहतमंद होते है। आमतौर पर कड़वे हर्ब से तैयार द्रव का पान करवाया जाता है या बस्ती थैरेपी (मल द्वार से) देते हैं। इसमें नीम, पटोला, गिलोय जैसे हर्ब शामिल होते हैं। इसके साथ ही प्रभावित स्थान पर मालिश और भाप देते हैं। इससे एवैस्कुलर नेक्रोसिस की परेशानी धीरे-धीरे खत्म होने लगती है।अवास्कुलर नेक्रोसिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार सबसे अच्छा है

        आयुर्वेद के अनुसार, एवस्कुलर नेक्रोसिस धातु परिणाम दुष्टि वातरक्ता, अस्थि क्षय और कटि ग्रह जैसा दिखता है। । तिक्त क्षीर बस्ती, अनुवासन वस्ति, अभ्यंगम, तेल धारा, लेपम, आयुर्वेदिक दवाओं के साथ वास्तव में मददगार हैं।

            संविधोपकर्म (उपचार के छह सिद्धांत) के अनुसार चिकित्सा की जाती हैं .

      १ मंजिष्ठादि क्षार वस्ति 

       २ चूर्ण पिंड स्वेद आदि चिकित्सा किसी विशेषज्ञ की देखरेख में अंतरंग कक्ष में भर्ती होकर किया जा सकता हैं .

          चिकित्सकीय परामर्श में विलम्ब कष्टकारक होता हैं .

          एरंड तेल एनीमा के लिए ,वृहतवात चिंतामणि रस दर्द होने पर ,विषगर्भ तेल स्थानिक प्रयोगार्थ ,अभयारिष्ट महारास्नादि कवाथ भोजन के बाद ,हिंग्वाष्टक चूर्ण  पानी से