तिल की खेती में 5 उन्नत क़िस्में जो बढ़ाएंगी तिल की पैदावार

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तिल की खेती में उन्नत क़िस्में अपनाकर किसान कम समय में ज़्यादा उपज और बेहतर तेल गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं।

भारत में तिल एक पारंपरिक लेकिन महत्त्वपूर्ण तिलहन फ़सल है, जिसका उपयोग न केवल घरेलू उपभोग में बल्कि औद्योगिक स्तर पर भी किया जाता है। इसकी मांग देश और विदेश दोनों जगह लगातार बनी हुई है, लेकिन किसानों को सबसे बड़ी चुनौती तिल की कम उपज से जुड़ी रहती है। इसका एकमात्र स्थायी समाधान है – तिल की खेती में उन्नत क़िस्में अपनाना। आधुनिक अनुसंधान और वैज्ञानिक तरीकों से विकसित की गई ये क़िस्में पारंपरिक बीजों की तुलना में अधिक उत्पादन देती हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक सहनशील भी होती हैं। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि कौन-कौन सी उन्नत क़िस्में हैं जो तिल की खेती में बदलाव ला सकती हैं।

उन्नत बीजों की आवश्यकता क्यों है?

देश में कई इलाकों में तिल की खेती पारंपरिक तौर-तरीकों से की जाती रही है। इससे उत्पादन सीमित रहता है और लागत अधिक आती है। लेकिन जैसे-जैसे मौसम की अनिश्चितता, कीट प्रकोप और मिट्टी की स्थिति में बदलाव आ रहा है, पारंपरिक क़िस्में अब उतनी सक्षम नहीं रहीं। ऐसे में तिल की खेती में उन्नत क़िस्में (Advanced Varieties in Sesame Cultivation) न केवल इन चुनौतियों से निपटने में मदद करती हैं, बल्कि इससे किसानों की आय भी दोगुनी हो सकती है। उन्नत बीज जल्दी तैयार होते हैं, कम सिंचाई में भी अच्छा उत्पादन देते हैं और उनके दानों में तेल की मात्रा अधिक होती है।

टी.सी. 25: जल्दी पकने वाली और ज़्यादा उपज देने वाली क़िस्म

टी.सी. 25 एक ऐसी उन्नत क़िस्म है जो लगभग 90 से 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इस क़िस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई वाले होते हैं और इनमें 30 से 35 दिन के भीतर फूल आने लगते हैं। प्रत्येक पौधे में औसतन 4 से 6 शाखाएँ निकलती हैं और उसमें 65 से 75 तक कैप्सूल (फलियां) बनते हैं, जो पौधे के ऊपरी हिस्से से लेकर नीचे तक एक साथ लगते हैं। इस क़िस्म की औसत उपज 4.25 से 4.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई गई है।

इसके बीजों का रंग सफेद होता है और इनमें तेल की मात्रा 48 से 49 प्रतिशत तक होती है। इतना ही नहीं, इसके दानों में प्रोटीन की मात्रा भी 26 से 27 प्रतिशत तक होती है, जो इसे पोषण की दृष्टि से भी उपयोगी बनाती है। तिल की खेती में उन्नत क़िस्में जैसे टी.सी. 25 से किसानों को बेहतर उत्पादन मिल सकता है।

आर.टी. 127: कम समय में पकने वाली और मजबूत क़िस्म

आर.टी. 127 उन किसानों के लिए एक बढ़िया विकल्प है जो जल्दी पकने वाली क़िस्म की तलाश में हैं। यह क़िस्म सिर्फ़ 75 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके बीजों का रंग भूरा होता है और इनमें तेल की मात्रा 45 से 47 प्रतिशत के बीच होती है। इसके अलावा प्रोटीन भी 21 प्रतिशत तक पाया जाता है। इसकी औसत उपज 6 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है, जो इसे बहुत ही उत्पादक बनाती है।

यह क़िस्म झुलसा, पत्तियों का गिरना और अन्य सामान्य बीमारियों के प्रति सहनशील पाई गई है। तिल की खेती में उन्नत क़िस्में जैसे आर.टी. 127 किसानों को कम समय में अधिक उपज देने की क्षमता रखती हैं।

आर.टी. 46: अधिक शाखाओं वाली और बहुउपयोगी क़िस्म

आर.टी. 46 क़िस्म के पौधे 100 से 125 सेंटीमीटर ऊँचे होते हैं और उनकी पत्तियां तथा फलियां एक-दूसरे के पास पास जुड़ी होती हैं। इस क़िस्म में भी फूल 35 से 40 दिनों के भीतर आने लगते हैं और औसतन 4 से 6 शाखाएँ निकलती हैं। एक पौधे में लगभग 73 से 90 कैप्सूल बनते हैं, जो इसे अधिक उपज देने वाली क़िस्म बनाते हैं। इसकी औसत उपज 6.00 से 8.00 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई गई है।

इसके बीजों का रंग सफेद होता है और तेल की मात्रा 49 प्रतिशत तक होती है। यह क़िस्म उन किसानों के लिए बेहद लाभकारी है जो ज़्यादा तेल और उपज दोनों की चाह रखते हैं। तिल की खेती में उन्नत क़िस्में में आर.टी. 46 निश्चित रूप से एक मजबूत नाम है।

आर.टी. 125: संतुलित बढ़वार और कम नुक़सान वाली क़िस्म

आर.टी. 125 क़िस्म 80 से 85 दिनों में पक जाती है और इसके पौधों की ऊँचाई 100 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। इस क़िस्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सभी फलियां एक साथ पकती हैं, जिससे उन्हें काटने में सुविधा होती है और झड़ने से होने वाला नुक़सान भी बहुत कम होता है। इसकी औसत उपज 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक देखी गई है। इस क़िस्म को अपनाकर किसान तिल की खेती में उन्नत क़िस्में के फायदों का पूरा लाभ ले सकते हैं।

टी. 13: तेल और प्रोटीन की उच्च मात्रा वाली क़िस्म

टी. 13 क़िस्म के पौधे लगभग 100 से 125 सेंटीमीटर ऊँचाई तक बढ़ते हैं और इनमें फूल 35 से 40 दिनों में आ जाते हैं। यह क़िस्म 90 से 100 दिनों में पूरी तरह से पक जाती है। इस क़िस्म के एक पौधे में लगभग 60 कैप्सूल पाए जाते हैं और बीजों का रंग सफेद होता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें तेल की मात्रा 49 प्रतिशत और प्रोटीन 24 प्रतिशत तक पाई जाती है। इसकी औसत उपज भी 5 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। पोषण और उत्पादन के मामले में तिल की खेती में उन्नत क़िस्मेंमें टी. 13 भी बहुत उपयोगी विकल्प है।

तिल की खेती में उन्नत क़िस्मों का चुनाव कैसे करें?

किसी भी किसान के लिए सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि उनके खेत की मिट्टी, मौसम और पानी की उपलब्धता के अनुसार कौन सी क़िस्म सबसे उपयुक्त होगी। इसके लिए वे स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं। बीज हमेशा प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें और बुवाई के लिए तय समय और दूरी का पालन करें। इससे बीज की गुणवत्ता बनी रहती है और फ़सल में एकरूपता आती है।

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