आम बजट में सब्सिडी के तीन बड़े व्यय वाले क्षेत्रों खाद्य, उर्वरक और ईंधन पर सब्सिडी वित्त वर्ष 2024 के संशोधित अनुमान से कम रहने का अनुमान लगाया गया है। हालांकि यह अंतरिम बजट के स्तर के बराबर ही रह सकती है।वित्त वर्ष 2025 के बजट में खाद्य सब्सिडी 2,05,250 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 24 के संशोधित अनुमान से 3.34 फीसदी कम है। उर्वरक सब्सिडी 1,64,00 करोड़ रुपये रह सकती है, जो संशोधित अनुमान से 13.18 फीसदी कम है। बजट में ईंधन सब्सिडी 11,925 करोड रुपये रहने का अनुमान है, जो संशोधित अनुमान से 2.57 फीसदी कम है।
संपूर्ण खाद्य सब्सिडी को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत जोड दिया गया है। इसके तहत केंद्र सरकार सभी पात्रों को हर महीने मुफ्त 5 किलो गेंहू या चावल देती है। खाद्य सब्सिडी घटने के अनुमान की वजह गेहूं की सरकारी खरीद में कमी आने के साथ ही खुले बाजार में बिक्री योजना (ओएमएस) के माध्यम से बिक्री बढाने का अच्छा प्रबंधन है।
वित्त वर्ष 24 में भारतीय खाद्य निगम एफसीआई ने ओएमएस के माध्यम से 100 लाख टन गेहूं की बिक्री की। उर्वरक सब्सिडी के मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक सब्सिडी व्यय 2022-23 से लगातार घट रहा है।
इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय गैस (एलएनजी) के दाम कम होना है, जिसकी यूरिया उत्पादन की लागत में 80 से 85 फीसदी हिस्सेदारी है। इस गैस के दाम अपने उच्चतम स्तर 30 से 35 से घटकर 15 से 16 एमएमबीटीयू रह गए हैं। गैस के दाम कम होने से यूरिया उत्पादन की लागत भी घटी है। जिससे सरकार के लिए सब्सिडी व्यय में कमी आई है।
गैर यूरिया उर्वरक पर सब्सिडी में कमी की वजह फॉस्फोरिक ऐसिड, अमोनिया और डीएपी के दाम घटना है। भारत में यूरिया की सालाना खपत 300 से 350 लाख टन है और इसका 70 से 90 लाख टन आयात होता है।
डीएपी की घरेलू खपत 100 से 125 लाख टन है, जबकि इसका घरेलू उत्पादन 40 से 50 लाख टन है, बाकी डीएपी आयात किया जाता है। नये उत्पादन संयंत्र खुलने के साथ ही भारत में यूरिया का आयात घटकर 50 लाख टन से नीचे आ गया है। यदि ईंधन सब्सिडी कम हो गई तो तेल विपणन कंपनियां अब खुदरा बिक्री के माध्यम से अपने ईंधन की लागत वसूलने में सक्षम हैं।