राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल यानि एनडीआरआईके स्थापना के 100 साल हो चुके हैं. इस लंबे सफर में इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने कई ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं जिसके चलते देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी इस संस्थान का नाम काफी चर्चा में रहा. मुर्रा नस्ल की भैंस राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल में तैयार की गई थी.
हरियाणा राज्य के करनाल जिले में स्थित राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान की स्थापना को 100 साल (NDRI Karnal 100 years) हो चुके हैंं. राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान यानि एनडीआरआई ने अपने 100 साल के इतिहास में भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में अपने रिसर्च में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं. जिसके चलते पशुपालन व डेयरी क्षेत्र में उसका डंका बजता है. संस्थान ने अपने 100 साल के लंबे सफर में नस्ल सुधार, दूध उत्पादन में बढ़ोतरी, क्लोन पशु तैयार करना, डेयरी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किये गये रिसर्च से अपनी पहचान स्थापित की. जिसके चलते आज हरियाणा ही नहीं पूरे भारत में इनके द्वारा तैयार किए गए पशु दूध उत्पादन व नस्ल सुधार में अच्छा परिणाम दे रहे हैं.
बैंगलोर से हुई थी शुरुआत- भारत में राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान की स्थापना वर्ष 1923 में पशुपालन एवं डेयरी इम्पीरियल इंस्टीट्यूट के नाम से बैंगलोर में की गई थी. संस्थान ने वहां पर पशुपालन एवं डेयरी इंपीरियल इंस्टीट्यूट के नाम से 32 वर्षों तक काम किया. उसके बाद इसे वर्ष 1955 में करनाल में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसके बाद इसको देश के राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान का मुख्यालय भी बना दिया गया. साथ ही इसका नाम राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान रखा गया. एनडीआरआई के दो क्षेत्रीय केंद्र भी हैं. एक बैंगलोर और दूसरा कल्याणी पश्चिम बंगाल में स्थित है. यह दोनों कार्यालय राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल के अंतर्गत काम करते हैं.
राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल.
दुनिया को दी मुर्रा भैंस- संस्थान में जहां पशुओं को लेकर रिसर्च की जाती है, वहीं दूध प्रोडक्ट्स पर भी काम किया जाता है ताकि इस क्षेत्र में लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों और भारत विश्व का प्रमुख दूध उत्पादक देश बन सके. मुर्रा भैंस पूरे विश्व में सबसे अच्छी नस्ल की भैंस मानी जाती है, जो करनाल के ही राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के द्वारा रिसर्च करके काफी वर्षों के बाद तैयार की गई थी. वहीं पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसने भैंस व गाय के क्लोन बच्चे तैयार किये हैं. भैंस के कई बच्चे तैयार किए गए हैं, लेकिन हाल ही में गिर गाय की एक बछिया क्लोन से तैयार की गई है, जो की बहुत बड़ी उपलब्दि है.
विश्व में भैंस का पहला क्लोन- जब से करनाल में इस संस्थान को स्थानांतरित किया गया था तभी से यहां के वैज्ञानिक पशुओं की नस्ल सुधार के साथ-साथ क्लोन पर भी काम कर रहे थे. काफी वर्षों की मेहनत के बाद 2009 में क्लोन से भैंस का बच्चा तैयार किया गया. भारत विश्व में भैंस का प्रथम क्लोन बनाने वाला देश है. अब तक करीब 25 क्लोन भैंस तैयार की जा चुकी हैं, जिनमें से 16 भैंसें अभी भी जीवित हैं. एनडीआरआई में सैकड़ों की संख्या में वैज्ञानिक लगातार पशुपालन व डेयरी क्षेत्र में रिसर्च कर रहे हैं.
राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने विश्व में भैंस का पहला क्लोन बनाया.
एनडीआरआई करनाल में रिसर्च के लिए करीब 2000 पशु रखे हुए हैं. इन पशुओं पर शोध कार्य किया जा रहा है. प्रयोग के लिए संस्थान को अलग-अलग विभागों में बांटा गया है, जिसमें कुछ वैज्ञानिक नस्ल सुधार पर काम कर रहे हैं तो कुछ पशुओं के क्लोन पर. वहीं कुछ वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन का पशुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है, उस पर भी काम कर रहे हैं. इसके अलावा कुछ वैज्ञानिक दूध के उत्पाद के ऊपर काम कर रहे हैं. संस्थान को कई श्रेणियों में बांटा गया है, जहां पर पशु से संबंधित अलग-अलग चीजों पर काम किए जा रहे हैं.
एनडीआरआई का पशु पोषण विभाग नए कैटल फीड एवं मिश्रित खनिज फॉर्मूलेशन इजात करने में कार्य कर रहा है. आईवीएफ, ओपीयू के द्वारा उत्तम नस्ल के दुधारू पशुओं का प्रजनन पशु जैव-प्रौद्योगिकी, पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभागों द्वारा किया जा रहा है. एनडीआरआई में राष्ट्रीय दूध गुणवत्ता एवं रेफरल केंद्र स्थापित है, जहां दूध व दूध से बने पदार्थों की गुणवत्ता की जांच होती है.
राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिक.
गिर गाय का पहला क्लोन- करनाल का राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान लगातार पशुओं की नस्ल सुधार पर काम कर रहा है और क्लोन तैयार करके उन्नत नस्ल के दुधारू जानवर बना रहा है. इस क्षेत्र में हाल ही में संस्थान ने एक और बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है. करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पहली बार गुजरा की प्रसिर्ध गिर गाय के पहले स्वदेशी क्लोन की बछीया को पैदा करके नया कीर्तिमान स्थापित किया है. इस बछिया का जन्म 16 मार्च को हुआ था. इसका नाम गंगा रखा गया है.
NDRI ने देश की पहली गिर गाय की क्लोन बछिया तैयार
जानकारी के मुताबिक बछिया का वजन 32 किलोग्राम है और वह बिल्कुल स्वस्थ है. गुजरात की देशी नस्ल गिर अपने विनम्र स्वभाव और दूध की गुणवत्ता को लेकर डेयरी किसानों के बीच लोकप्रिय है और भारत के बाहर गिर मवेशी बहुत लोकप्रिय हैं. गायों के विकास के लिए कई प्रयोग ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको और वेनेजुएला को निर्यात किए गए हैं.
इससे पहले भी भारत की मुर्रा नस्ल भैंस को विदेशों में भेजा जा चुका है, जो अपने आप में एक बहुत ही बड़ी बात है. ऐसे में 100 साल के अपने कार्यकाल में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल ने समय-समय पर कई बेहतरीन रिसर्च करके पूरे विश्व में भारत का नाम चमकाने का काम किया है. इसके द्वारा पैदा किये गये नई नस्ल के पशुओं ने भारत में दूध उत्पादन को बढ़ाने में अहम योगदान दिया है. पिछले कई दशकों से संस्थान डेयरी उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रबंधन और मानव संसाधन विकास के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण काम कर रहा है.