मध्यप्रदेश देश का जैव उर्वरक राज्य बनने की राह पर

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भोपाल।  मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य पहले ही बन चुका है, जहां पर सर्वाधिक जैविक खेती की जाती है। इसके साथ ही अब प्रदेश उस रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिससे की उसे जैव उर्वरक निर्माण वाला प्रदेश का तमगा लग जाए। फिलहाल इस मामले में मप्र दूसरे स्थान पर आ चुका है। अब मप्र से आगे महज गुजरात ही है। इसके साथ ही तरल जैव उर्वरक बनाने में मप्र देश में पहले स्थान पर है। अगर दो साल पहले की बात की जाए तो कैरियर आधारित यानी बैक्टीरिया से जैव उर्वरक बनाने के मामले में वर्ष 2022-23 में मध्य प्रदेश तमिलनाडु, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद छठवें क्रम पर था, लेकिन दो साल में मप्र ने इसमें बड़ी कामयाबी पाते हुए दूसरा स्थान हासिल कर लिया है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो जैव उर्वरक मामले में गुजरात में 33 लाख 86 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होता है जबकि मप्र में इसका उत्पादन 32 हजार 11 मीट्रिक टन है। वहीं, तरल आधारित जैव उर्वरक के उत्पादन में 20 हजार 9 किलो लीटर के साथ मप्र का पहला स्थान है। अगर पूरे देश में जैव उर्वरक उत्पादन के आंकड़े को देखें तो बीते साल वर्ष 2023-24 में दो लाख 56 हजार 208 मीट्रिक टन कैरियर आधारित और एक लाख छह हजार 262 किलो लीटर तरल आधारित जैव उर्वरक का उत्पादन हुआ था।

जैव उर्वरक के उत्पादन में देश में दूसरे नंबर पर होने के बाद भी प्रदेश में किसान रासायनिक के खाद के लिए हर साल फसल की बुआई के दौरान परेशान हो रहे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच जारी युद्ध की वजह से यह खाद संकट बना हुआ है। इसकी वजह है अधिकांश रासायनिक खाद की आपूर्ति इन दोनों ही देशों से होती है। ऐसे में सरकार के पास जैव उर्वरक के प्रयोग के प्रोत्साहित करने का अच्छा अवसर है।  अगर जैविक चोती की बात की जाए तो मध्य प्रदेश तेजी से जैविक खेती की ओर बढ़ा है। देश में जैविक खेती का सबसे बड़ा रकबा मध्य प्रदेश में 15 लाख 92 हजार हेक्टेयर है। दूसरे नंबर पर 13 लाख हेक्टेयर के साथ महाराष्ट्र है। इसके बाद गुजरात में नौ लाख 37 हजार हेक्टेयर, राजस्थान में छह लाख 78 हजार है। केंद्र सरकार की पारंपरिक कृषि विकास योजना के अंतर्गत प्रदेश में तीन हजार से अधिक क्लस्टर बने हैं। बता दें कि प्रदेश में खेती का कुल रकबा डेढ़ करोड़ हेक्टेयर है। प्रदेश में कुछ किसान लंबे समय से जैविक खेती करते रहें हैं, पर सरकारी प्रोत्साहन के साथ इसकी शुरुआत वर्ष 2001 में प्रत्येक विकासखंड में एक गांव में जैविक खेती के साथ हुई थी।

तो समाप्त हो जाएगा संकट
दरअसल प्रदेश में हर साल किसानों को बीते कई सालों से खाद संकट का सामना करना पड़ रहा है। अगर प्रदेश इस मामले में पहले स्थान पर आ जाता है तो प्रदेश में खाद का संकट लगभग समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा जैविक खेती से होने वाले उत्पादन की वजह से किसानों को फसलों के दाम भी अच्छे मिलेंगे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।

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