पोल्ट्री फार्मिंग कों कैसे मुनाफे का बिजनेस बना सकते हैं किसान

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देश के किसानों का एक बड़ा तबका पोल्ट्री फार्मिंग से जुड़ा हुआ है, कमर्शियल पोल्ट्री फार्मिंग में ब्रायलर यानी माँस और लेयर यानी अंडा उत्पादन किया जाता है। आखिर मुर्गी पालकों के सामने क्या चुनौतियाँ आ रही हैं और कैसे निपट सकते हैं। पोल्ट्री फार्मर्स ब्रायलर वेलफेयर फेडरेशन के अध्यक्ष एफएम शेख ने मुर्गी पालन से जुड़ी कई ज़रूरी बातें साझा की हैं।

एफएम शेख बताते हैं, “पोल्ट्री फार्मिंग कई चुनौतियों से जूझ रहा है, कोविड के समय अफवाहों से नुकसान हुआ, फिर बर्ड फ्लू, इसके बाद सोयाबीन और मक्का के बढ़ते दाम की वजह से लागत बढ़ गई।” वो आगे कहते हैं, “लागत से कम दाम में पोल्ट्री बर्ड बेचे जा रहे हैं, देश में 70 प्रतिशत से अधिक लोग नॉन वेजेटेरियन हैं, पचास लाख किसान मुर्गी फार्मिंग से जुड़े हुए हैं; लेकिन अभी भी हमारे देश में पोल्ट्री सात-आठ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जबकि देश में ब्रायलर उत्पादन 10-15 की ग्रोथ हो रही है।” भारत में संगठित या वाणिज्यिक पोल्ट्री क्षेत्र कुल मांस और अंडे के उत्पादन में लगभग 75 प्रतिशत योगदान देता है जबकि असंगठित क्षेत्र 25 फीसदी योगदान देता है। 20वीं पशुधन गणना रिपोर्ट के अनुसार, कुल पोल्ट्री आबादी 851.81 मिलियन (बैकयार्ड पोल्ट्री आबादी 317.07 मिलियन सहित) है, जो कि पिछली पशुधन जनगणना की तुलना में 45.8 फीसदी अधिक है। अंडा उत्पादन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है। देश में कुल अंडा उत्पादन 138.38 बिलियन होने का अनुमान है। साल 2018-19 के दौरान 103.80 बिलियन अंडों के उत्पादन के अनुमान की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान पिछले 5 वर्षों में 33.31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

मक्के की एमसपी बढ़ने से भी मुर्गी पालकों की लागत बढ़ गई है। “पोल्ट्री के लिए किसान मक्का 2500 रुपए क्विंटल खरीद रहे हैं; मक्का का दाम बढ़ने से लागत बढ़ गई है। ” उन्होंने आगे बताया। देश में कुल मक्का का लगभग 47 फीसदी इस्तेमाल पोल्ट्री फीड बनाने में ही इस्तेमाल किया जाता है। मक्के के अलावा सोयाबीन दूसरा बड़ा घटक है। कारोबारियों के मुताबिक इन दोनों फसलों की न सिर्फ कीमत ज़्यादा है; बल्कि माँग के हिसाब से आपूर्ति भी नहीं हो पाती है। इसका असर मुर्गी और अंडा पालने वाले किसान, पोल्ट्री फीड और फीड बनाने वाली मशीनें बनाने वाली कंपनियाँ के अलावा चूजे की मशीन और चूजे सप्लाई करने वाली कंपनियों और वैक्सीन-दवा बनाने वाली कंपनियों के कारोबार पर भी पड़ता है। पोल्ट्री फीड में 50 फीसदी मक्का होता है और 15-18 फीसदी सोयाबीन होता है।

इसके साथ ही मुर्गियों के फीड में 15 फीसदी राइस ब्रान पॉलिश का इस्तेमाल किया जाता है। बाकी में अन्य ऊर्जा वर्धक तत्व होते हैं। मुर्गियों को तीन तरह का आहार दिया जाता है, जो उनकी उम्र पर निर्भर करता है। ब्रायलर पोल्ट्री फार्मिंग की यात्रा हैचरी से फार्म पर एक दिन का चूजा आता है, चूजे 72 घंटे तक बिना खाए पिए रह सकते हैं। फार्म में चूजों को लाने के बाद उन्हें सबसे पहले सैनिटाइज किया जाता है। शुरुआत के एक हफ्ते तक उसे अधिक तापमान में रखा जाता है, जैसे बढ़ते जाते हैं, मुर्गी फार्म का तापमान घटाया जाता है। फार्म में वो 34-35 दिनों में तैयार हो जाते हैं। इस पर भी जैसा मौसम होगा, उतनी जल्दी मुर्गे तैयार होंगे।

अक्टूबर से नवंबर के महीने में लगभग 32 दिनों में दो किलो तक वजन हो जाता है; जबकि गर्मियों में 35-38 दिन भी लग जाते हैं। इस दौरान वो तीन किलो के लगभग फीड खाते हैं। बाज़ार में माँग के हिसाब से मुर्गे जैसे तंदूरी चिकन के लिए इस्तेमाल होने वाले चिकन का वजन 1000-1200 ग्राम होता है; तो ये 24-25 दिनों में तैयार हो जाते हैं। अगले दस दिनों में वो दो किलो तक हो जाता है। नया फार्म शुरू करने वाले लोगों को सलाह देते हुए एफएम शेख कहते हैं, “अगर आप पोल्ट्री फार्मिंग शुरू करना चाहते हैं, तो अपना खुद का फार्म शुरू करने से पहले कोई पुराना फार्म ही किराए पर लेकर साल भर चलाइए। अगर आपको समझ में आ जाए कि आप कर सकते हैं तभी अपना फार्म शुरू करें।”