सोयाबीन के 8000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भाव देने की व्यवस्था करे सरकार
सोयाबीन के समर्थन मूल्य से भी नीचे बिकने के कारण किसानों का अब सोयाबीन के प्रति मोह भंग होता जा रहा है। इससे मध्य प्रदेश से सोया प्रदेश का तमगा भी छीनने की आशंका व्यक्त की जा रही है, क्योंकि किसान अब सोयाबीन के बजाय दूसरी फसल की ओर बढ़ने को मजबूर हो रहे हैं । विभिन्न किसान संगठन के नेताओं ने इस स्थिति के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है।
संयुक्त किसान मोर्चा के श्री बबलू जाधव एवं श्री रामस्वरूप मंत्री ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि संयुक्त किसान मोर्चा के मालवा निमाड़ के 20 से ज्यादा किसान संगठनों के नेताओं ने कहा है कि मध्यप्रदेश देश का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश में नर्मदापुरम और मालवा निमाड़ क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खेती की जाती है। इस साल एमपी में भी सोयाबीन किसानों को उपज का उचित मूल्य न मिलने से सरकार के प्रति असंतोष बढ़ गया है। राज्य में सोयाबीन की थोक कीमत पिछले एक दशक में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। किसानों का अब सोयाबीन के प्रति मोह भंग होता जा रहा है। हो सकता है कि मध्य प्रदेश से सोया प्रदेश का तमगा भी छिन जाए, क्योंकि किसान अब सोयाबीन के बजाय दूसरी फसल की ओर बढ़ने को मजबूर हैं।
किसानों की नाराजगी इस बात से भी समझी जा सकती है कि वे 12 साल पहले जिस कीमत पर सोयाबीन बेचा करते थे, इस साल भी उसी दाम पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस स्थिति के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि किसान अब ठगाने को तैयार नहीं है। किसानों को भाजपा के घोषणा पत्र में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों को उनकी उपज का मूल्य सी प्लस टू +50 के अनुसार दिए जाने और किसान की आय दोगुनी करने का वादा भी छलावा लग रहा है।
किसान नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है,लेकिन इस साल महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खरीद एमएसपी से लगभग 2000 रुपये कम कीमत पर की जा रही है। नर्मदापुरम से लेकर मालवा तक सोयाबीन की कीमत 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच स्थिर है। इस साल की उपज 15 सितंबर से बाजार में आएगी। इससे बाजार की स्थिति और बिगड़ेगी। इन किसान नेताओं का कहना है कि सोयाबीन के दाम गिरने का मुख्य कारण केंद्र सरकार की गलत नीतियां हैं। लैटिन अमेरिकी देशों में सोयाबीन की अच्छी उपज के बाद भारत में आयात शुल्क में कटौती की गई है। इससे घरेलू व्यापारियों ने कम कीमत पर सोयाबीन का तेल आयात किया, जिससे सोयाबीन की मांग और कीमतें गिर गईं । संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से मांग की है कि सोयाबीन के 8000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भाव देने की व्यवस्था करे। यदि सरकार इस पर विचार नहीं करती, तो किसान मोर्चा 1 से 7 सितंबर तक हर गांव में पंचायत सचिव को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपेगा।