शैक्षणिक कैंपस में किताबों, स्टेशनरी, कपड़ों, राशन, फलों-सब्जियों और दूध-दही जैसी तमाम चीजों की जरूरत होती है. जितने बच्चे पढ़ते हैं उनके लिए मार्केट से सामान आकर कैंपस में बिकता है. लेकिन यह सब काम व्यापारियों और बिचौलियों के जरिए होता है. अब यह सब इंतजाम कॉपरेटिव के जरिए करने और उस सप्लाई चेन में किसानों को सीधे जोड़ने की जरूरत है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल 1,113 विश्वविद्यालयों और 43,796 कॉलेजों में 4 करोड़ से अधिक युवा उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. यह वर्ष 2020-21 का आंकड़ा है. यानी शैक्षणिक कैंपस में एक बड़ा कंज्यूमर आधार है. जिसमें इनकी खानपान की जरूरतों को पूरा करने के लिए अभी तक बाजार और बिचौलियों का सहारा लिया जाता रहा है. अब एक ऐसा मंत्र दिया जा रहा है कि इसे कॉपरेटिव से जोड़कर कैंपस और किसानों दोनों को फायदा दिलाया जाए. इसी थीम के साथ वर्ल्ड इकोनॉमिक कॉपरेटिव फोरम और नेशनल कॉपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया (NCUI) की ओर से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) परिसर में बुधवार को देश के जाने-जाने सहकारी नेता मंथन करेंगे. ताकि एक ऐसा रोडमैप तैयार किया जा सके कि विश्वविद्यालयों में कैंपस कॉपरेटिव बनाकर सीधे किसानों को कैसे लाभ दिलाया जाए.
आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में इसी मंशा को पूरा करने के लिए ‘कैंपस कॉपरेटिव’ बनाने का विचार प्रधानमंत्री की ओर से कृषि सुधार के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्य बिनोद आनंद ने दिया है. इसके लिए उन्होंने मंगलौर यूनिवर्सिटी कॉपरेटिव सोसायटी लिमिटेड का उदाहरण दिया है, जिसका टर्नओवर 2012 में ही ही करीब 93 लाख रुपये था, जबकि नेट प्रॉफिट लगभग 20 लाख रुपये था. इसलिए वो जेएनयू परिसर में सहकारी क्षेत्र के नेताओं को बुलाकर इस मिशन को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि किसान सीधे तौर पर कैंपस से जुड़ जाएं.
पस कॉपरेटिव का क्या होगा फायदा
आनंद का कहना है कि कैंपस में किताबों, स्टेशनरी, कपड़ों, राशन, फलों-सब्जियों और दूध-दही जैसी तमाम चीजों की जरूरत होती है. जितने बच्चे पढ़ते हैं उनके लिए मार्केट से सामान आकर कैंपस में बिकता है. लेकिन यह सब काम व्यापारियों और बिचौलियों के जरिए होता है. अब यह सब इंतजाम कॉपरेटिव के जरिए करने और उस सप्लाई चेन में किसानों को सीधे जोड़ने की जरूरत है. विदेशों में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं. कैंपस कॉपरेटिव से विद्यार्थियों और किसानों दोनों को फायदा पहुंचेगा. क्यों इतना बड़ा बाजार व्यापारियों और बिचौलियों को दिया जाए. इस वक्त देश में सहकारिता क्षेत्र को मजबूत करने का काम जारी है. इसी कड़ी का हिस्सा कैंपस कॉपरेटिव भी बन सकता है.
कौन-कौन लोग रहेंगे मौजूद
आनंद ने बताया कि कार्यक्रम में इफको के चेयरमैन दिलीप संघानी, कृभको के चेयरमैन चंद्रपाल सिंह यादव, नेफेड के चेयरमैन बिजेंद्र सिंह, जेएनयू के प्रो वीसी सतीश चंद्र गरकोटी, भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड में निदेशक सतीश मराठे, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिश एडमिनिस्ट्रेशन के डीजी डॉ. एसएन त्रिपाठी, नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड के एमडी प्रकाश नाइकनावरे, एनसीडीईएक्स के एमडी अरुण रस्ते, हिमाचल प्रदेश के प्रिंसिपल रेजीडेंट कमिश्नर सुशील कुमार सिंगला और जेएनयू में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर सुधीर सुथर मौजूद रहेंगे.
विश्वविद्यालयों में चलेगा अभियान
केंद्र सरकार द्वारा बनवाई जा रही नेशनल कॉपरेटिव पॉलिसी की कमेटी के चेयरमैन सुरेश प्रभु सहकारी नेताओं के इस संगम में ऑनलाइन जुड़ेंगे. देश में सहकारिता शिक्षा की सबसे बड़ी संस्था वैमनीकॉम में कॉपरेटिव बिजनेस मैनेजमेंट के अल्मुनाई एसोसिएशन (AADVAM) ने विश्वविद्यालयों में कैंपस कॉपरेटिव बनाने के लिए अभियान चलाने का फैसला लिया है. दावा है कि इससे सहकारी क्षेत्र की इकोनॉमी को बूस्टर डोज मिलेगा.