अरबी की बुवाई का मौसम : फरवरी-मार्च और जून-जुलाई
अरबी गर्मी की फसल है, इसका उत्पादन गर्मी और वर्षा ऋतू में किया जाता है। अरबी की तासीर ठंडी रहती है। इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है जैसे अरुई , घुइया , कच्चु और घुय्या आदि है।यह फसल बहुत ही प्राचीन काल से उगाई जा रही है। अरबी का वानस्पातिक नाम कोलोकेसिया एस्कुलेंटा है। अरबी प्रसिद्ध और सबसे परिचित वनस्पति है, इसे हर कोई जानता है। सब्जी के अलावा इसका उपयोग औषिधीय में भी किया जाता है।
अरबी का पौधा सदाबहार साथ ही शाकाहारी भी है। अरबी का पौधा 3 -4 लम्बा होता है , इसकी पत्तियां भी चौड़ी होती है। अरबी सब्जी का पौधा है, जिसकी जड़ें और पत्तियां दोनों ही खाने योग्य रहती है। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते है, उनका आकर दिल के भाँती दिखाई पड़ता है।
अरबी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
अरबी की खेती के लिए जैविक तत्वों से भरपूर मिट्टी की जरुरत रहती है। इसीलिए इसके लिए रेतीली और दोमट मिट्टी को बेहतर माना जाता है।
इसकी खेती के लिए भूमि का पी एच मान 5 -7 के बीच में होना चाहिए। साथ ही इसकी उपज के लिए बेहतर जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता पड़ती है।
अरबी की उन्नत किस्में
अरबी की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है, जो किसानों को मुनाफा दिला सकती है। सफ़ेद गौरिया, पंचमुखी, सहस्रमुखी, सी -9, श्री पल्लवी, श्री किरन, श्री रश्मी आदि प्रमुख किस्में है, जिनका उत्पादन कर किसान लाभ उठा सकता है।
अरबी -1 यह किस्म छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए अनुमोदित की गयी है, इसके अलावा नरेंद्र – 1 भी अरबी की अच्छी किस्म है।
अरबी की खेती का सही समय
किसान साल भर में अरबी की फसल से दो बार मुनाफा कमा सकते है। यानी साल में दो बार अरबी की फसल उगाई जा सकती है एक तो रबी सीजन में और दूसरी खरीफ के सीजन में।
रबी के सीजन में अरबी की फसल को अक्टूबर माह में बोया जाता है और यह फसल अप्रैल से मई माह के बीच में पककर तैयार हो जाती है।
यही खरीफ के सीजन में अरबी की फसल को जुलाई माह में बोया जाता है, जो दिसंबर और जनवरी माह में तैयार हो जाती है।
उपयुक्त वातावरण और तापमान
जैसा की आपको बताया गया अरबी गर्मी की फसल है। अरबी की फसल को सर्दी और गर्मी दोनों में उगाया जा सकता है। लेकिन अरबी की फसल के पैदावार के लिए गर्मी और बारिश के मौसम को बेहतर माना जाता है।
इन्ही मौसम में अरबी की फसल अच्छे से विकास करती है। लेकिन गर्मी में पड़ने वाला अधिक तापमान भी फसल को नष्ट कर सकता है साथ ही सर्दियों के मौसम में पड़ने वाला पाला भी अरबी की फसल के विकास को रोक सकता है।
अरबी की खेती के लिए कैसे करें खेत को तैयार ?
अरबी की खेती के लिए अच्छे जलनिकास वाली और दोमट मिट्टी की आवश्यकता रहती है। खेत में जुताई करने के 15 -20 दिन पहले खेत में 200 -250 क्विंटल खाद को डाल दे।
उसके बाद खेत में 3 -4 बार जुताई करें , ताकि खाद अच्छे से खेत में मिल जाए। अरबी की बुवाई का काम किसानों द्वारा दो तरीको से किया जाता है। पहला मेढ़ बनाकर और दूसरा क्वारियाँ बनाकर।
खेत को तैयार करने के बाद किसानों द्वारा खेत में 45 से.मी की दूरी पर मेढ़ बना दी जाती है। वही क्यारियों में बुवाई करने के लिए पहले खेत को पाटा लगाकर समतल बनाया जाता है। उसके बाद 0.5 से.मी की गहरायी पर इसके कंद की बुवाई कर दी जाती है।
बीज की मात्रा
अरबी की बुवाई कंद से की जाती है , इसीलिए प्रति हेक्टेयर में कंद की 8 -9 किलोग्राम मात्रा की जरुरत पड़ती है। अरबी की बुवाई से पहले कंद को पहले मैंकोजेब 75 % डब्ल्यू पी 1 ग्राम को पानी में मिलाकर 10 मिनट तक रख कर बीज उपचार करना चाहिए। बुवाई के वक्त क्यारियों के बीच की दूरी 45 से.मी और पौधो की दूरी 30 से.मी और कंद की बुवाई 0.5 से.मी की गहराई में की जाती है।
अरबी की खेती के लिए उपयुक्त खाद एवं उर्वरक
अरबी की खेती करते वक्त ज्यादातर किसान गोबर खाद का प्रयोग करते है ,जो की फसल की उत्पादकता के लिए बेहद फायदेमंद रहता है। लेकिन किसानों द्वारा अरबी की फसल के विकास लिए उर्वरको का उपयोग किया जाता है।
किसान रासायनिक उर्वरक फॉस्फोरस 50 किलोग्राम , नत्रजन 90 -100 किलोग्राम और पोटाश 100 किलोग्राम का उपयोग करें, इसकी आधी मात्रा को खेत की बुवाई करते वक्त और आधी मात्रा को बुवाई के एक माह बाद डाले।
ऐसा करने से फसल में वृद्धि होगी और उत्पादन भी ज्यादा होगा।
अरबी की फसल में सिंचाई
अरबी की फसल यदि गर्मी के मौसम बोई गयी है ,तो उसे ज्यादा पानी आवश्यकता पड़ेगी। गर्मी के मौसम में अरबी की फसल को लगातार 7 -8 दिन लगातार पानी देनी की जरुरत रहती है। यदि यही अरबी की फसल बारिश के मौसम में की गयी है ,तो उसे कम पानी की जरुरत पड़ती है। अधिक सिंचाई करने पर फसल के खराब होने की भी संभावनाएं रहती है। सर्दियों के मौसम में भी अरबी को कम पानी की जरुरत पड़ती है। इसकी हल्की सिंचाई 15 -20 के अंतराल पर की जाती है।
अरबी की फसल की खुदाई
अरबी की फसल की खुदाई उसकी किस्मों के अनुसार होती है , वैसे अरबी की फसल लगभग 130 -140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जब अरबी की फसल अच्छे से पक जाए उसकी तभी खुदाई करनी चाहिए।
अरबी की बहुत सी किस्में है जो अच्छी उपज होने पर प्रति हेक्टेयर में 150 -180 क्विंटल की पैदावार देती है। बाजार में अरबी की कीमत अच्छी खासी रहती है। अरबी की खेती कर किसान प्रति एकड़ में 1.5 से 2 लाख रुपए की कमाई कर सकता है। अरबी की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकती है। साथ ही कीट और रोगों से दूर रखने के लिए किसान रासायनिक उर्वरको का भी उपयोग कर सकते है।साथ ही फसल में खरपतवार जैसी समस्याओ को भी नियंत्रित करने के लिए समय समय पर गुड़ाई और नराई का भी काम करना चाहिए। इससे फसल अच्छी और ज्यादा होती है, ज्यादा उत्पादन के लिए किसान फसल चक्र को भी अपना सकता है।
अरबी की बुवाई का मौसम : फरवरी-मार्च और जून-जुलाई
अरबी की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु
अरबी की फसल के लिए सबसे अच्छा मौसम गर्मी का होता है , गर्म एवं नम जलवायु अरबी की खेती के लिए बहुत ही उपयोगी होती।21 से 27 डिग्री का तापमान इसकी खेती के उत्पादन के लिए बहुत ही अच्छा होता है।अधिक गर्मी होने से अरबीकी फसल की ज्यादा पैदावार होती है।किसान अरबी की खेती के लिए जिस मिट्टी का प्रयोग करते हैं वह बलुई दोमट मिट्टी होती है और यह मिट्टी इस फसल के लिए बहुत ही उपयोगी मानी जाती है।
अरबी रोपाई का समय और बीज उपचार
किसान अरबी की रोपाई फरवरी-मार्च और जून से जुलाई तक करते हैं।वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत में फरवरी और मार्च में अरबी की फसलों की रोपाई की जाती है। अरबी की फसल की बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम कंद 5 ग्राम रिडोमिल एम में कम से कम 10 से 15 मिनट डूबा कर रखना चाहिए। इसकी उपचारित करने के लिए।
अरबीखेत की तैयारी
अरबी(Arbi) की खेती के लिए पहले खेतों को हल द्वारा अच्छी खुदाई की जरूरत होती है।एक नियमित रूप की गहराई प्राप्त करनी होती है। किसी भी हल द्वारा खेतों की मिट्टी को पलटना आवश्यक होता है। मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए तीन से चार बार हल्की जुताई करनी चाहिए। ताकि खेत की मिट्टियों में भुरभुरा पन आ जाए। क्यारियां की ऊंचाई कम से कम 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए जमीन की सतह से लेकर। इन क्यारियों की दूरी कम से कम 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इस प्रकार आप अरबी (Arbi) की खेती तैयार कर सकते हैं।
अरबीकी फसल के लिए खाद एवं उर्वरक
किसान अरबीकी फसल के लिए 40 से लेकर 60 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं।इस खाद का प्रयोग प्रति एकड़ खेत में किया जाता है। इन प्रति एकड़ओं में किसान जमीन में कम से कम 16 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल करते हैं तथा 25 किलोग्राम फॉस्फोरस का और 25 किलोग्राम पोटाश पूर्ण रूप से मिलाते हैं। खाद तैयार करने के लिए फसलों पर 16 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव करते हैं।
अरबीकी फसल की सिंचाई
अरबीकी फसल की सिंचाई 7 से लेकर 10 दिन के अंदर करना शुरू कर देना चाहिए। रोपाई करने के बाद यह सिंचाई 5 महीने अंतराल पर लगातार करनी चाहिए। यदि किसी करण वर्षा नहीं हो रही है तो आपको यह सच्चाई 15 दिनों के भीतर करते रहना चाहिए। निराई – गुड़ाई करने के बाद खरपतवारों पर आसान तरीके से नियंत्रण पा लिया जाता है।
अरबीकी फसल की कटाई एवं खुदाई
फसल की विभिन्न विभिन्न किस्में एवं प्रकार के अनुसार इन को तैयार होने में लगभग 150 से 225 दिनों का समय लग सकता है। वहीं दूसरी ओर आप 40 से 50 दिनों बाद पत्तियों को काट सकते हैं।अरबी(Arbi) की फसल की पत्तियां जब हल्की हल्की पीली होकर सूखने लगे और पत्तियों का आकार छोटा हो, तब इनकी खुदाई अच्छी तरह से कर लेनी चाहिए।
अरबीकी फसल में लगने वाले रोगों से बचाव
अरबी की फसल में मुख्य रूप से कुछ रोग एवं कीट पैदा हो जाते हैं। रोगों और कीटों के लगने से अरबीकी फसल की पत्तियां गलकर गिरना शुरू हो जाती है। फसल उपज में काफी बुरा असर पड़ता है।कीटो और रोगों से बचने के लिए और इनकी रोकथाम के लिए किसान 15 से 20 दिन के अंदर खेतों में डाईथेन एम-45 2.5 ग्राम प्रति लिटर तथा कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम प्रति लिटर, मेन्कोजेब 63 प्रतिशत का मिक्सर बनाकर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव करते हैं। इन क्रियाओं द्वारा अरबी की फसल पूर्ण रूप से कीटो और रोगों से सुरक्षित रहती है। किसी तरह के अन्य कीट और रोगों की कोई संभावना नहीं होती है। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे इस आर्टिकल के जरिए ,आपको अरबी की बुवाई साल में दो बार फरवरी-मार्च तथा जून- जुलाई में की जाती है, यदि सभी प्रकार की जानकारियां प्राप्त कर आप संतुष्ट है, तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।