प्रकृति को लेकर हम कितने सतर्क

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सूर्य की तपिश में मानों हर जीव झुलस रहे हों. नदियों का पानी सूखने की कगार पर आ गया.  यहां तक कि कई ग्रामीण क्षेत्रों में चापाकल सूख गए,  पोखर,  तलाब सूख गए. कुंआ का अस्तित्व तो विलुप्त ही है. भारत के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां कभी पानी की किल्लत होती ही नहीं थी. इस बार वो भी क्षेत्र बिन पानी सून है. सूर्य की तपिश ऐसी की मानों जला ही दें और हुआ भी यही की इसबार हीटवेव के कारण कितनों की जानें चली गई. अधिकांश जगहों पर तापमान 45 से 50 डिग्री सेल्सियस रहा है. ये सामान्य सी घटना नहीं है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? ये सोचने का विषय है. आने वाले 10 साल में स्थिति ऐसी ही रही तो ये कहना गलत नहीं होगा की आसमान से आग बरसेगी और ये सिलसिला बढ़ता ही रहा तो आने वाले 40-50 साल में पूरा देश पानी की समस्या से जूझ रहा होगा और तापमान 100 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच चुका होगा. तब की स्थिति की कल्पना ही भयभीत करती है.

हम पर्यावरण संरक्षण को भूलते जा रहे

   आने वाले समय में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगे ऐसा मुमकिन नहीं लगता.  नदियां प्रदूषण मुक्त हो जाएगी ऐसी बातें करना ही मूर्खतापूर्ण है. हम भौतिक सूखों में प्रकृति को भूलते जा रहे है. पर्यावरण संरक्षण की बातें बस पर्यावरण दिवस पर ही सुनने को मिलती है. सच्चाई तो ये है कि हमारे पास इन विषयों पर सोचने के लिए समय ही नहीं है. कम से कम आने वाले वक्त के लिए तो अभी से कमर कस ही लेनी चाहिए कि अन्न-जल के अभाव में मरना है. अगर हम बच भी गए तो आने वाली पीढ़ी इसका दंश झेलेगी ही झेलेगी. साल 2018 में नीति आयोग द्वारा किए गए एक अध्ययन में 122 देशों के जल संकट की सूची में भारत रहा है. 2070 तक भारत की आधी आबादी सूर्य की तपिश और पानी के अभाव में अपना जीवन यापन कर रहा होगा.

वैज्ञानिकों की चेतावनी कुछ दशक बाद पानी की होगी किल्लत

 कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ती आबादी की जरूरतों और सिंचाई के लिए भारी मात्रा में जमीन से पानी निकाला जा रहा है. इससे पृथ्वी की धुरी प्रभावित हुई है. साथ ही इसके घूमने का संतुलन भी बिगड़ा है. सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के भू- भौतिकीविद डॉ. की वेन सीओ ने बताया है कि पृथ्वी की धुरी में बदलाव और भूजल दोहन के बीच मजबूत संबंध सामने आना. वैज्ञानिकों के लिए भी एक बड़ा आश्चर्य है. जल विशेषज्ञों ने लंबे समय से भूजल के अत्यधिक उपयोग के परिणामों के बारे में पहले ही चेतावनी दी थी. सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूजल तेजी से महत्वपूर्ण संसाधन बनता जा रहा है. दरअसल जमीन से पानी तो निकाला जा रहा है, लेकिन इसकी भरपाई नहीं हो पा रही है. इससे जमीन अपने स्थान से खिसक सकती हैं, जिससे घरों और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है. हमारी बड़ी लापरवाही से भूजल के स्रोत हमेशा के लिए खत्म हो सकते हैं.

अब जरूरी है पर्यावरण के लिए जारगरुक होना

अब समय आ चुका है कि हम सभी पर्यावरण के प्रति जितना सतर्क हो जाएं, उतना बेहतर. साथ ही साथ पर्यावरण के लिए लोगों को भी जागरुक होना पड़ेगा. सरकार के साथ समाज को भी अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए. साथ ही साथ खुद के लगाए गए पौधों के संरक्षण के लिए खुद से भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.