चेन्नई के निकट ऑरोविले: एक ऐसा शहर जहां न जाति है,न धर्म और न ही कोई सरकार!

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डॉ श्रीगोपाल नारसन

भारत में एक ऐसा शहर भी है, जहां न कोई धर्म है, न पैसा चलता है, न ही यहां कोई सरकार है और न ही कोई कानून व्यवस्थासंभालने के लिए कोई प्रशासनिक अमला है।यहां पर रहने वाले लोग जाति-धर्म, ऊंच-नीच, भेदभाव, राजनीति जैसी चीजों से दूर रह कर सिर्फ एक सुखद, आरामदायक और शांति का जीवन जीते है। इस खूबसूरत शहर को 124 देशों की मिट्टी से एक कमल के आकार में बनाया गया है। यह स्थान शांति का प्रतीक है।इस शहर में बसने की इच्छा रखने वाले लोगों को सेवक के तौर पर रहना होता है। ये शहर धार्मिक विश्वास से परे है और सिर्फ सत्य के मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है। शहर में किसी की कोई भी सरकार नहीं है। यह शहर बिना सरकार के शांतिपूर्वक चलता है। यह एक विधानसभा द्वारा नियंत्रित होता है जिसमें यहां का रहने वाला हर एक वयस्क शामिल होता है। जिसमे सभी विभिन्न धर्मों, समुदाय और संस्कृतियों से आए हुए लोग होते हैं लेकिन इन सब के बावजूद यहां के सभी लोग आपसी तालमेल के साथ शांति से इस शहर को चलाते हैं।

यहां रहने वाले लोग एक- दूसरे के जीवन-यापन में एक परिवार की तरह ही योगदान देते हैं।ऑरोविले नामक इस शहर में कागजी मुद्रा यानि रुपयों का भी आदान-प्रदान नहीं होता है। यहां के लोग नकद राशि नहीं रखते । हालांकि वे बाहरी लोगों के साथ पैसों का लेन-देन कर सकते हैं। करीब 35 साल पहले इस शहर में एक फाइनेंशियल सर्विस सेंटर को शुरू किया गया था। जिसे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मंजूरी दी गई है।यह सेंटर यहां के रहने वाले लोगों के लिए एक बैंक की तरह काम करता है। इस बैंक में यहां रहने वाले लोग अपना पैसा ऑनलाइन या ऑफलाइन जमा करते हैं। पैसे जमा कराने के लिए लोगों को ऑरोविले फाइनेंशियल सर्विस की तरफ से एक अकाउंट नंबर मुहैया कराया जाता है।
इस नंबर से शहर के करीब 200 कमर्शियल सेंटर और छोटी-बड़ी दुकानों में खरीदारी की जा सकती है। वहीं अगर कोई व्यक्ति अतिथि के तौर पर आता है, तो उसे डेबिट कार्ड की तरह एक ऑरो कार्ड जारी किया जाता है। जिसकी सहायता से वह अपनी जरुरत की चीजों की खरीदारी कर सकता है।इस शहर का अपना आर्किटेक्चर और टाउन प्लानिंग ब्यूरो है। जिसमें अभिलेखीय सुविधाएं, अनुसंधान संस्थान, ऑडिटोरियम, 40 उद्योग, खेती, रेस्तरां, फार्म, गेस्टहाउस आदि बने हुए हैं। यहां स्कूल, अस्पताल से लेकर यूनिवर्सिटी तक लोगों की जरूरत की हर चीज मौजूद है।इस शहर में स्वास्थ्य सुविधाएं, परिवहन, कला और सांस्कृतिक केंद्र, मीडिया और कम्युनिकेशन से लेकर सोशल इंटरप्राइजेस की भी सुविधा है। इतना ही नहीं,यहां के निवासियों के लिए एक कंप्यूटर, एक ई-मेल नेटवर्क (ऑरोनेट) भी है। यहां एक बीच भी है, इसको भारत का सबसे शांत और खूबसूरत शहर माना जाता है। शांति पसंद लोगों को यह शहर काफी आकर्षित करता है। दुनियाभर से लोग यहां आकर घंटों तक शहर के समुद्रतट यानि बीच के सुकून का आनंद उठाते हैं।
चेन्नई के निकट आध्यात्मिक सुख देने वाला,शांति का बोध कराने वाला,धर्म-जाति का भेद किये बिना मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराने वाला शहर , जिसे ऑरोविले अर्थात भोर का शहर के नाम से जाना जाता है।मानव एकता के उद्देश्य से स्थापित इस अदभुत शहर की स्थापना 28 फरवरी सन 1968 में द मदर नाम से विख्यात मीरा रिचर्ड नामक एक फ्रांसीसी महिला ने की थी। वह भारतीय आध्यात्मिक संत श्री अरबिंदो की शिष्या थीं। जिनकी शिक्षा अभिन्न योग और उच्च चेतना के प्रति समर्पण की अवधारणा पर आधारित रही।
उनकी इच्छा थी, पृथ्वी पर कहीं ऐसा स्थान होना चाहिए, जिस पर कोई भी राष्ट्र अपना दावा न कर सके, जहां ईमानदार आकांक्षा वाले सभी सद्भावना वाले मनुष्य दुनिया के नागरिकों के रूप में स्वतंत्र रूप से रह सकें और एक ही प्राधिकार का पालन कर सकें, सर्वोच्च सत्य का; शांति, सद्भाव का,यह सब इस स्थान पर उन्होंने स्थापित किया। ऑरोविले का एक लक्ष्य धर्म, राजनीति और राष्ट्रीय सीमा से मुक्त होना भी है। यह एक वैधानिक ऑरोविले फाउंडेशन द्वारा संचालित है, जिसे भारत सरकार संरक्षण प्राप्त है। तभी तो फाउंडेशन के बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति शिक्षा मंत्रालय द्वारा की जाती है।
यहां का अंतर्निहित सिद्धांत है कि अर्पण के रूप में किए गए कार्य में चेतना बेहतर विकसित होती है। यहां रहने वाले लोग नकदी के बजाय, ऑरो कार्ड का उपयोग करते हैं, जो उनके खातों से जुड़े डेबिट कार्ड के रूप में कार्य करता है। यहां आने वाले अतिथियों को भी अस्थायी ऑरो कार्ड लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
जब ऑरोविले की स्थापना हुई तब यहां की जमीन पूरी तरह से बंजर थी। जिसे यहां के लोगो ने वृक्षारोपण करके घने जंगल के रूप में आच्छादित कर दिया। ऑरोविले का कुल क्षेत्रफल 2,000 एकड़ यानि 8 वर्ग किलोमीटर है।यहां 120 बस्तियां बसी हैं जिनमे 50 देशों से अधिक नागरिकों की वर्तमान में करीब 24 हजार लोगों की आबादी है। जिनमें दस हजार से अधिक भारतीय हैं। यहां 50,हजार लोगों के रहने की व्यवस्था हो सकती है।यहां की व्यवस्था लगभग 5,000 कर्मचारी संभालते हैं।अमीर और गरीब के बीच कोई अंतर नही है। ऑरोविले आगंतुक केंद्र आगंतुकों के लिए सुलभ है, दिवाली और पोंगल त्योहारों को छोड़कर, यह प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम 5.30 बजे तक खुलता है ।यहां के कैफेटेरिया में भोजन किया जा सकता है और यहां के लोगो द्वारा बनाए गए उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद खरीद सकते है।यहां के सबसे महत्वपूर्ण मातृमंदिर में आमजन का प्रवेश प्रतिबंधित है। यह मंदिर केवल गंभीर आध्यात्मिक साधकों के लिए ही बनाया गया है।ऑरोविले में
अतिथि के रूप में रहा जा सकता है। यहां बहुत से लोग शांत वातावरण का आनंद यहां प्रवास करके लेते हैं।यहां कई सांस्कृतिक और कल्याणकारी गतिविधियाँ और कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। यहां जैविक खेती जैसी कुछ परियोजनाओं में भी स्वयंसेवा कर सकते हैं।यहां की बस्तियों में आवास के लिए विभिन्न विकल्प हैं। स्थान और सुविधाओं के आधार पर कुछ सौ रुपये से लेकर 7,000 रुपये प्रति रात तक का भुगतान करने पर यहां ठहरा जा सकता हैं। सबसे सस्ते यहां के गेस्टहाउस है, जिन्हें देहाती के रूप में जाना जाता है, इन गेस्टहाउस में छप्पर वाली छतें और साझा बाथरूम हैं।जिसकी पहले से ही बुकिंग कराना जरूरी है। गेस्टहाउस में ठहरने की अधिकतम अवधि एक सप्ताह तक की होती है।यहां आपको आसपास जाने के लिए स्कूटर किराए पर लेना होगा या साइकिल चलानी होगी।
यहां एक ऑरोविले शांत उपचार केंद्र है।ऑरोविले और पांडिचेरी के बीच एक शांत समुद्र तटीय गांव में क्वाइट हीलिंग सेंटर वैकल्पिक उपचार उपचारों, पाठ्यक्रमों, कार्यशालाओं और कार्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रदान करता है। यहां के मातृमंदिर, जिसे शहर की आत्मा के रूप में माना जाता है,में सोना की परत का ध्यान गुंबद और माता का मंदिर है। इस मातृमंदिर का निर्माण सन 1971 से 2008 तक हुआ। इसे फ्रांसीसी वास्तुकार रोजर एंगर द्वारा डिजाइन किया गया , जो द मदर संस्थापक के शिष्य थे। मातृमंदिर का आंतरिक कक्ष पूरी तरह से सफेद है, जिसमें सफेद संगमरमर की दीवारें और सफेद कालीन है। इसके केंद्र में एक शुद्ध क्रिस्टल ग्लोब है, जिसका व्यास लगभग 80 सेंटीमीटर है, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से निर्देशित सूर्य के प्रकाश से युक्त है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रकाश एकाग्रता के अनुभव को बढ़ाता है। मातृमंदिर में 12 पंखुड़ियाँ भी हैं जिनमें 12 ध्यान कक्ष हैं, प्रत्येक का नाम ईमानदारी, विनम्रता, कृतज्ञता और दृढ़ता जैसे गुणों के नाम पर रखा गया है। यह किसी भी छवि, संगठित ध्यान, फूल, धूप और धार्मिक रूपों से रहित है।
मातृमंदिर को आगंतुक केंद्र से जो एक किलोमीटर की दूरी पर है,से देखा जा सकता है।मंदिर के अंदर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। निश्चित ही भारतीय धरा पर यह अदभुत शांत,रूहानी,निर्लेप भाव की बस्ती है।जहां जाकर प्रवास करना बेहद सुखद है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)